''शिवमूर्ति ने लोकप्रियता के प्रलोभन से बचते हुए कम लिख कर आत्मसंयम का परिचय दिया है।''-अशोक वाजपेयी
- लमही सम्मान समारोह
- साहित्य का देवता ब्यौरों में बसता है - अशोक वाजपेयी
- लमही सम्मान से विभूषित किए गए कथाकार शिवमूर्ति
- लखनऊ,दिनांक 8 अक्तूबर, 2012
’’आज तमाम तकनीकी और आधुनिक सुविधाओं के बावजूद न गॉंव बदले हैं न उनका यथार्थ। इस यथार्थ की सच्ची प्रतिच्छवियां प्रेमचंद के बाद शिवमूर्ति जैसे कथाकार और उपन्यासकार में दीख पड़ती हैं। ’’-
-ये बातें आज जाने माने कवि आलोचक एवं संस्कृतिविद अशोक वाजपेयी ने लखनउ में 'लमही' त्रैमासिक की ओर से आयोजित लमही सम्मान समारोह में शिवमूर्ति को सम्मानित करते हुए कहीं। कथाकार मुंशी प्रेमचंद की पुण्यतिथि पर आयोजित लमही सम्मान समारोह में अशोक वाजपेयी ने शिवमूर्ति को लमही सम्मान प्रतीक एवं सम्मान स्वरूप पंद्रह हजार रूपये की राशि प्रदान की। उनके सम्मान में मानपत्र का वाचन युवा कथाकार किरण सिंह ने किया तथा सम्मान पत्र चित्रा मुदगल जी ने शिवमूर्ति को भेंट किया।
अशोक वाजपेयी ने कहा कि अक्सर यथार्थ से हमारा क्या रिश्ता होना चाहिए इस पर बहस होती है। यह कोई ऐसी चीज नहीं है कि हम इसे बाजार से ले आऍं। दरअसल साहित्यकार ही यथार्थ को रचता है, वह उसे किसी से प्राप्त नही होता। इस तथाकथित यथार्थ से हमारा संवाद, सहकार तथा द्वंद्व का रिश्ता बनता है। उन्होंने कहा कि अंतत: गल्प जो यथार्थ रचता है वह भी गल्प ही है। लेखक जानता है कि वह कहानी लिख रहा है तो वह कहानी ही लिख रहा है। अशोक वाजपेयी ने कहा कि साहित्य का देवता दरअसल ब्यौरों में बसता है। विचार ब्यौरों की अवहेलना भी करता है। पर वह जिन्दा रेशों को पकड़ने की कोशिश करता है। उन्होने शिवमूर्ति की इस बात का समर्थन किया कि कहानी एक लड़की की तरह होती है । यदि उसमें कला नहीं है तो वह निर्वसन है। वाजपेयी ने कहा कि साहित्य का विचार संवेदना में रचा बसा विचार है। इसलिए क्या वजह है कि हमने साहित्य को विचार का उपनिवेश बना रखा है जबकि साहित्य खुद एक विचार का माध्यम ही है ?
विचारधारा की ओर इंगित करते हुए उन्होंने कहा कि आज विचार और विचारधारा की जो दुर्गति है ऐसी स्थिति में हिंदी में साहित्य की पट्टी ही प्रतिपक्ष की असली भूमिका में है। बाकी तो बस लूटपाट हो रही है।शिवमूर्ति के बारे में वाजपेयी ने कहा कि वे हमारे समय के यथार्थ के भूगोल को, मानवीयता को चौरस और नैतिक बनाते हैं। वे दी हुई सचाई को समझने के विधियों में इजाफा करते हैं। शिवमूर्ति के कथापात्रों के बारे में बोलते हुए बाजपेयी ने कहा कि उनके यहॉं साधारण की महिमा का बखान है। प्रेमचंद ने जिन किसानों मजूदरों को साहित्य के केंद्र में रखा है, शिवमूर्ति ने उसका अपनी कहानियों, उपन्यासों में पुनराविष्कार किया है। शिवमूर्ति ने लोकप्रियता के प्रलोभन से बचते हुए कम लिख कर आत्मसंयम का परिचय दिया है। उनके यहॉं नवनीत की तरह गलने और फौलाद की तरह ढलने वाली वृत्ति देखी जाती है। आज साहित्य से विस्मय, रहस्य इत्यादि का भाव गायब हो रहा है, शिवमूर्ति अपनी रचनाओं में उसकी पुनर्प्रतिष्ठा करते हैं। अशेाक जी ने कामना कि शिवमूर्ति के मन का असाढ़ कभी सूखे नहीं।
इस अवसर पर कथाकार एवं समारोह की अध्यक्षा चित्रा मुदगल ने लमही के शिवमूर्ति विशेषांक का लोकार्पण किया। चित्रा मुदगल ने आज के कथा साहित्य में शिवमूर्ति के अवदान पर बोलते हुए कहा कि आज किसान निर्विकल्प हो गए हैं, उनके उत्थान के सारे रास्ते बंद हो गए हैं। प्रेमचंद ने किसान को जहॉं पर छोड़ा था, मार्कण्डेय ने 'हंसा जाइ अकेला' में गॉंव को जहॉं छोड़ा था, विवेकी राय ने जो गॉंव रचा है, उसे शिवमूर्ति ने नए सिरे से उठाया है। यथार्थ से उनका जैसा सामना होता है उनकी कोशिश होती है कि उसे बेलौस रचें। उन्होंने उनकी कहानियों सिरी उपमाजोग, तिरिया चरित्तर और अकाल दंड जैसी कहानियों के यथार्थ के अप्रतिम सौंदर्य की सराहना की। उन्होंने कहा कि उनके यहां अवध का समाज गांव का बदलता हुआ परिदृश्य व्यंजित हुआ है। चित्रा मुद्गल ने शिवमूर्ति की कहानियों पर भावुकता के आरोप को सिरे से नकारते हुए कहा कि उनके यहां भावुकता बिल्कुल नही है, बल्कि उनके यहॉं मानवीयता का विस्तार है, अंत:करण की संवेदना का विस्तार है।
आखिरी छलॉंग उपन्यास इसी मानवीय संवेदना के क्षरण का दस्तावेज है। उन्होंने उनकी कहानियां के साहसिक अंत की भी सराहना की जहां वे पूरी तार्किकता से पेश आते हैं। चित्रा जी ने उनके स्त्री पात्रों को ज्यादा सजग बताया और कहा कि भले ही वे शोषित हों, वे पंचायत तक में सवाल और जिरह करने से नहीं घबरातीं। यहॉं तक कि कसाईबाड़ा के बेईमान किरदार की पत्नी आखिरकार यह कह कर धिक्कारती है कि यह गॉंव आप लोगों के चलते कसाईबाड़ा बन चुका है। उन्होंने बताया कि लमही का शिवमूर्ति विशेषांक उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व को उजागर करने में सार्थक रहा है और कमलेश्वर अवधनारायण मुदगल और कन्हैयालाल नंदन के संपादन में निकली सारिका के विशेषांकों के स्तर का है। इससे पूर्व अशोक वाजपेयी व चित्रा मुद्गल के स्वागतस्वरूप लमही के प्रधान संपादक विजय राय ने ‘आतिथ्य लमही’ प्रतीक भेंट किया।
पुरस्कृत कथाकार शिवमूर्ति ने बोलते हुए कहा कि साहित्य हमें आत्मनिरीक्षण का अवसर देता है। यह हमारी जिन्दगी का रोजनामचा है। इतिहास में राजा महाराजाओं के आख्यान तो मिलते हैं पर आम आदमी का कोई जिक्र तफसील से नही मिलता। साहित्य उन्हीं आम आदमियों की बात करता है। उन्होंने कहा कि 'मैं क्यों लिखता हूँ' इस बारे में अक्सर पूछा जाता है । मेरे लेखे जो गांव का दुख दर्द है शोषण है, अत्याचार है, वह राज्य का हो या सामंतों या वर्चस्ववादियों का----- मेरा लेखन सदैव उनके विरुद्ध एक प्रतिपक्ष रचता है। वह भले समाज को बदलने का दावा नही करता पर एक ऐसी जमीन अवश्य रचता है जिस पर सत्ता की बुनयाद को भी हिलाया जा सकता है। शिवमूर्ति ने कहा कि आज आम आदमी और खास आदमी के बीच असमानता का अंतर एक लाख गुने से ज्यादा हो गया है। जहां एक कारपोरेट के सीईओ का वेतन करोड़ो में होता है वहीं एक किसान की औसत आय सालाना 5700 भी नहीं होती। उन्होंने कहा कि आज गे तथा नाइटक्लबों के कहानी लेखन के इस दौर में किसान कहानियों के केंद्र से गायब हो गया है। मेरा मकसद उसी हाशिये पर जीते ओर जाते समाज का आख्यान रचना है। विचारधारा के बारे में शिवमूर्ति दृढ़मत थे कि इसे रचना में ही अनुस्यूत होना चाहिए। उन्होंने कहा कि लिखने के लिए कारणों की कमी नही है। अभी बहुत कुछ लिखा जाना बाकी है। आज की दुनिया औपनिवेशिक दुनिया से ज्यादा तकलीफदेह है जहॉं हमें अपने से और अपनों से जूझना पड़ रहा है। मेरी कोशिश है कि मैं कहानियों में इस तकलीफ को शब्द दूँ। समारोह में शिवमूर्ति के गॉंव कुरंग सुल्तानपुर से दर्जनों की संख्या में उनके जीवित पात्र, संगी साथी और खेतिहर किसान आए थे जिनकी प्रेरणा को वे अपनी कहानियों और जीवन की समझ का आधार मानते हैं।
सम्मान समारोह के मुख्य वक्ता युवा आलोचक वैभव सिंह ने शिवमूर्ति के कथा संसार पर बोलते हुए कहा कि शिवमूर्ति की कहानियॉं गांव को फ्रीज किए गए स्थिर रूपों में नहीं बल्कि उनके गतिशील रूप को देखने में भरोसा करती हैं। उनके यहॉं गॉंव केवल हरी भरी वसुंधरा का रूपायन नहीं है बल्कि मानवीय पीड़ा तथा जीवन संघर्ष का रूपक हैं।उन्होंने उनकी तिरिया चरित्तर, केसर कस्तूरी, कसाईबाड़ा, भरत नाट्यम, अकालदंड और ख्वाजा ओ मेरे पीर को हिंदी की बेजोड़ कहानियों में शुमार किया। उन्होंने आधुनिकता के विमर्श और डिस्कोर्स की रोशनी में शिवमूर्ति की कहानी की मूल संवेदना की पड़ताल की।
लमही के प्रधान संपादक विजय राय ने इस अवसर पर कहा कि लमही का प्रकाशन प्रेमचंद के साहित्यिक सरोकारों को रेखांकित करने के उद्देश्य से किया गया। लमही सम्मान की स्थापना का स्पष्ट लक्ष्य है ---प्रेमचंद की कथा-परंपरा को विकसित करने वाले रचनाकारों का समादर एवं उनकी सर्जनात्मकता का सम्मान। उन्होंने कहा कि ‘लमही’ पत्रिका वस्तुत: एक संकल्प है एक गॉंव या कालजयी लेखक को गौरवान्वित करने का नही, बल्कि हिंदुस्तान के उन तमाम ग्रामीण अंचलों को फिर से राष्ट्रीय विमर्श के केंद्र में लाने का जो आजादी के बाद लगातार खिसकता जा रहा है। श्री राय ने कहा कि आजादी का सपना जहॉं एक ओर साबरमती में देखा गया, वहीं तत्कालीन लेखकीय सरंचनाऍं लमही, चिरगांव, कौसानी और गढ़ाकोला जैसी पवित्र स्थलियों में भी संभव हुईं। लमही बाजार के शिकंजे में पड़ी जनता को एक रचनात्मक स्पेस देने व नई रचनाशीलता को अविरल जगह देने के लिए प्रतिबद्ध है।
समारोह का संचालन करते हुए आलोचक ओम निश्चल ने कहा कि शिवमूर्ति की कहानी ग्रामीण यथार्थ के सूक्ष्म ब्यौरों के संदर्भ में जिन स्तरों तक पहुँच चुकी है वहॉं तक अभी सूक्ष्मतर और आत्मा की अभिव्यक्ति मानी जाने वाली कविता भी नहीं पहुँच सकी है। उन्होंने यह भी कहा कि पंत और प्रेमचंद की रचनाओं के गांवों में जो अंतर अपने समय में रहा है वही अंतर आज के कवियों की कविताओं में चित्रित गॉंवों और शिवमूर्ति की कहानियों के गॉंवों में है। शिवमूर्ति की कहानी गॉंवों के यथार्थ को कविता से ज्यादा सूक्ष्म ब्यौरों में जाकर देख पाती है।
लमही के शिवमूर्ति विशेषाक के अतिथि संपादक सुशील सिद्धार्थ ने कहा कि यह लगभग ढाई सौ से ज्यादा पन्नों में शिवमूर्ति के कथा साहित्य का समग्रता में एवं साठ से ज्यादा अनुभवी एवं नवीन दृष्टिसंपन्न आलोचकों द्वारा किया गया मूल्यांकन है जो हिंदी की समकालीन साहित्यिक पत्रकारिता को एक नया आयाम देगा। उन्होंने कि लमही खंडित संवेदना का प्रतिनिधित्व नही बल्कि समावेशिता का समर्थन करती है, जिसकी प्रतिच्छाया इस विशेषांक में देखी और महसूस की जा सकती है। धन्यवाद ज्ञापित करते हुए लमही के संपादक ऋत्विक राय ने कहा कि शब्द ’लमही’ की देशजता में ही वैश्विकता की अनुगूंज समाहित है तथा इसका संकल्प है कि यह जीवनपर्यंत गॉंव देस के यथार्थ के उद्भेदन में संलग्न रचनाओं के कृती अवदानों से पहचानी जाए। उन्होंने सम्मान समारोह में पधारे मुख्य अतिथि अशोक वाजपेयी, कथाकार चित्रा मुद्गल, कथाकार शिवमूर्ति एवं वैभव सिंह समेत समस्त आगत साहित्यकारों, पत्रकारों, मीडियाकर्मियों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की। लगभग तीन घंटे तक चले लमही सम्मान समारोह का जीवंत संचालन कवि-आलोचक डॉ.ओम निश्चल ने किया।
इस समारोह में रवींद्र वर्मा, नरेश सक्सेना, अखिलेश, वीरेन्द्र यादव, राकेश, शैलेंद्र सागर, रमेश दीक्षित, वंदना मिश्र, भगवान स्वरूप कटियार, गजाल जैगम, प्रज्ञा पांडे, सुशीला पुरी, कुमार अवधेश, सुशील सीतापुरी, वीरेन्द्र सारंग, रजनी गुप्त, आतमजीत सिंह, महेश भारद्वाज, सुभाष राय, हरेप्रकाश उपाध्याय,अशोक कुमार पाण्डेय, वरुण सिंह चौहान, आदित्य हवेलिया, वत्सल कक्कड़, कला एवं रंगकर्मी समेत सैकड़ों की संख्या में लखनऊ और आस पास के शहरों से आए लेखक साहित्यकार, पत्रकार एवं मीडियाकर्मी उपस्थित थे।
मंजरी राय
प्रबंध संपादिका
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