हिंदी में गॉंवों के यथार्थ की समझ रखने वाले कथाकारों की कमी नहीं है किन्तु जीवन की नीच ट्रेजेडी जीने वाले निम्न वर्ग के पूरे परिवेश, पंचायत, परधान, थाना कचेहरी,न्याय-अन्याय, शोषकों, अन्नदाताओं की जितनी बारीक समझ शिवमूर्ति को है, उतनी उनके समकालीनों में विरल है। कसाईबाड़ा, सिरी उपमा जोग, अकालदंड, भरत नाट्यम, तिरिया चरित्तर जैसी कहानियॉं लिख कर उन्होंने इस कला में रससिद्ध होने का परिचय दिया है।
त्रिशूल, तर्पण और आखिरी छलॉंग तीनों उपन्यास भी उनकी कहानियों की तरह ही ज़मीन से जुड़ी भाषा और मुहावरे में अवध के सामंती परिवेश सहित उदारीकरण के क्रूर यथार्थ को जीवंत कर देते हैं। बिना किसी जादुई यथार्थ का सहारा लिये या दलित विमर्श अथवा स्त्री विमर्श का तूमार बॉंधे शिवमूर्ति की कहानियॉं समाज के आर्थिक और सामाजिक हालात से गुजरती हुई स्त्रियों और सामाजिक पतन की दहलीज पर सर धुनते, महज एक चिथड़ा सुख भर के लिए दुनिया भर के अवमान झेलते दलितों का फलितार्थ व्यक्त कर देती हैं। अवधी का एक मिजाज तुलसी में मिलता है तो दूसरा
जायसी में। शिवमूर्ति के कथासंसार में भी अवधी की भाषिक ताकत और बोली-बानी देख कर उनका लोहा मानना पड़ता है। उनके वृत्तांत ‘ठुमुक चलत रामचंद्र बाजत पैंजनियॉं’ सरीखी उत्सवता की भाषा से बिल्कुल अलग और कारुण्य की नमी से भीगे अभिलेखों की मानिंद है। एक एक वृत्तांत और संवाद निहायत सहज होकर बुनने में इस कथाकार को ऐसी महारत हासिल है कि लगता है गॉव का यह बाशिंदा पाणिनि की अष्टाध्यायी के सुसंस्कृत परिवेश से नहीं, भाषा और समाज के आदिम व्याकरण से होकर गुजरा है।
लखनऊ में राय उमानाथ बाली प्रेक्षागृह में इसी 8 अक्तूबर 2012 को अपराह्न 2 बजे शिवमूर्ति को लमही सम्मान से विभूषित किया जा रहा है। सम्मान श्री अशोक वाजपेयी देंगे और समारोह की अध्यक्षता श्रीमती चित्रा मुद्गल जी करेंगी। प्रेमचंद परिवार से जुड़े और अपनी यत्किंचित पेंशन की कमाई से श्री विजय राय ने 2008 से अब तक ‘’लमही’’ की सॉंस को अपनी सॉंस की तरह जिंदा रखा है। लखनऊ और आसपास के मित्रों से आग्रह है कि वे इस समारोह में स्वत:स्फूर्त भाव से उपस्थित होकर अवधी समाज के अद्भुत चितेरे शिवमूर्ति के प्रति अपनी प्रणति व्यक्त करें और लमही के शिवमूर्ति अंक(सं.सुशील सिद्धार्थ) के लोकार्पण के साक्षी बनें।
बैंकिंग क्षेत्र में वरिष्ठ प्रबंधक हैं.
अवध विश्वविद्यालय से साठोत्तरी हिन्दी कविता पर शोध.
मार्फत : डॉ.गायत्री शुक्ल, जी-1/506 ए, उत्तम नगर,
हिंदी में गॉंवों के यथार्थ की समझ रखने वाले कथाकारों की कमी नहीं है किन्तु जीवन की नीच ट्रेजेडी जीने वाले निम्न वर्ग के पूरे परिवेश, पंचायत, परधान, थाना कचेहरी,न्याय-अन्याय, शोषकों, अन्नदाताओं की जितनी बारीक समझ शिवमूर्ति को है, उतनी उनके समकालीनों में विरल है। कसाईबाड़ा, सिरी उपमा जोग, अकालदंड, भरत नाट्यम, तिरिया चरित्तर जैसी कहानियॉं लिख कर उन्होंने इस कला में रससिद्ध होने का परिचय दिया है।
त्रिशूल, तर्पण और आखिरी छलॉंग तीनों उपन्यास भी उनकी कहानियों की तरह ही ज़मीन से जुड़ी भाषा और मुहावरे में अवध के सामंती परिवेश सहित उदारीकरण के क्रूर यथार्थ को जीवंत कर देते हैं। बिना किसी जादुई यथार्थ का सहारा लिये या दलित विमर्श अथवा स्त्री विमर्श का तूमार बॉंधे शिवमूर्ति की कहानियॉं समाज के आर्थिक और सामाजिक हालात से गुजरती हुई स्त्रियों और सामाजिक पतन की दहलीज पर सर धुनते, महज एक चिथड़ा सुख भर के लिए दुनिया भर के अवमान झेलते दलितों का फलितार्थ व्यक्त कर देती हैं। अवधी का एक मिजाज तुलसी में मिलता है तो दूसरा
जायसी में। शिवमूर्ति के कथासंसार में भी अवधी की भाषिक ताकत और बोली-बानी देख कर उनका लोहा मानना पड़ता है। उनके वृत्तांत ‘ठुमुक चलत रामचंद्र बाजत पैंजनियॉं’ सरीखी उत्सवता की भाषा से बिल्कुल अलग और कारुण्य की नमी से भीगे अभिलेखों की मानिंद है। एक एक वृत्तांत और संवाद निहायत सहज होकर बुनने में इस कथाकार को ऐसी महारत हासिल है कि लगता है गॉव का यह बाशिंदा पाणिनि की अष्टाध्यायी के सुसंस्कृत परिवेश से नहीं, भाषा और समाज के आदिम व्याकरण से होकर गुजरा है।
लखनऊ में राय उमानाथ बाली प्रेक्षागृह में इसी 8 अक्तूबर 2012 को अपराह्न 2 बजे शिवमूर्ति को लमही सम्मान से विभूषित किया जा रहा है। सम्मान श्री अशोक वाजपेयी देंगे और समारोह की अध्यक्षता श्रीमती चित्रा मुद्गल जी करेंगी। प्रेमचंद परिवार से जुड़े और अपनी यत्किंचित पेंशन की कमाई से श्री विजय राय ने 2008 से अब तक ‘’लमही’’ की सॉंस को अपनी सॉंस की तरह जिंदा रखा है। लखनऊ और आसपास के मित्रों से आग्रह है कि वे इस समारोह में स्वत:स्फूर्त भाव से उपस्थित होकर अवधी समाज के अद्भुत चितेरे शिवमूर्ति के प्रति अपनी प्रणति व्यक्त करें और लमही के शिवमूर्ति अंक(सं.सुशील सिद्धार्थ) के लोकार्पण के साक्षी बनें।
बैंकिंग क्षेत्र में वरिष्ठ प्रबंधक हैं.
अवध विश्वविद्यालय से साठोत्तरी हिन्दी कविता पर शोध.
मार्फत : डॉ.गायत्री शुक्ल, जी-1/506 ए, उत्तम नगर,
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