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'त्रिवेणी' की आयोजन रिपोर्ट :-अब कौन जनक आए तेरे लिए -योगेश कानवा

रिपोर्ट@चित्तौड़गढ़

अब कौन जनक आए तेरे लिए -योगेश कानवा 

अपनी माटी वेबपत्रिका की चित्तौड़ शाखा के कुछ साथियों ने रविवार तीस सितम्बर को त्रिवेणी के शीर्षक से एक कविता पाठ आयोजन रखा। चित्तौड़ दुर्ग के उत्तरी भाग में बने रतन सिंह महल के केन्द्रीय बारामदे में सुबह साढ़े ग्यारह बजे हुए  इस आयोजन ने अपने अनौपचारिक अंदाज़ और कविता विमर्श से शहर के पाठकों को लुभाया। तय अनुक्रम के अनुसार आयोजन में सूत्रधार की भूमिका में हिन्दी प्राध्यापक और युवा समीक्षक डॉ कनक जैन रहे। कार्यक्रम में कविता की मौसिकी से जुड़े और रुझानभरे कुल जमा पंद्रह साथी थे।

कार्यक्रम की अध्यक्षता जाने माने गीतकार अब्दुल ज़ब्बार ने की। अतिथि कवियों के साथ अब्दुल ज़ब्बार का अभिनन्दन महाराणा प्रताप पी जी कोलेज चित्तौड़ के हिन्दी प्रवक्ता डॉ राजेश चौधरी ,आकाशवाणी के नैमित्तिक उदघोषक भगवती लाल सालवी,अपनी माटी के तकनीकी जानकार चन्द्रशेखर चंगेरिया ने किया। संयोजक कनक जैन ने अपनी भूमिका में आयोजन समूह अपनी माटी की पृष्ठभूमि के बारे में बीज व्यक्तव्य दिया।

हमविचार संभागी साथियों के आपसी परिचय के साथ ही सबसे पहले आकाशवाणी चित्तौड़ के कार्यक्रम अधिकारी योगेश कानवा ने अपने  अपनी रचनाओं की शुरुआत स्त्री विषयक विमर्श को छेड़ती ग़ज़ल से की।




बूढा गरीब बाप सोचता है 



घर के लिए मुश्किल है तू (1)




दिलों के बीच हैं मीलों के फासले 
और दिखावे को यहाँ गले मिलते हैं लोग(2)

जैसे चंद शेर के बाद उन्होंने अपनी प्रकाशित पुस्तक की प्रतिनिधि कविता अब कौन जनक आए पढ़ी। इसी तरह लो आ गयी सब्जी वाली जैसी कविता के ज़रिये भी उन्होंने मध्यमवर्गीय जीवन की चिंताओं को बहुत अच्छे से उकेरा ।हिन्दी और राजस्थानी में अपने ढंग से लिखने वाले योगेश कानवा ने इस तरह के आयोजन को कड़ीवार ढंग से आगे बढ़ाने की बात भी कही।

दूजे कवि और स्कूली शिक्षा के प्रधानाचार्य नन्द किशोर निर्झर ने चित्तौड़ के इतिहास की बानगी प्रस्तुत करते हुए कई नामचीन कवियों की चुनिन्दा पंक्तिया सुनाई। उन्होंने राष्ट्रीयता की बात छेड़ते  हुए इस माटी से तिलक करो,ये माटी नहीं चन्दन है शीर्षक गीत सुनाया। संगोष्ठी में निर्झर ने दुर्ग से जुड़े लगभग सभी ख्यातनाम व्यक्तित्वों का ज़िक्र कर कविता के साथ ऐतिहासिक तथ्यों की भी झलक दे डाली।

सञ्चालन करते हुए कनक जैन ने श्रोताओं को हिन्दी साहित्य के इतिहास से जुड़े कई प्रसंग सुनाते हुए बहुत से स्थापित कवियों की रचनाओं के ज़िक्र से गोष्ठी को गूंथ दिया। अंतिम साथी के रूप में अध्यापक और संस्कृतिकर्मी  माणिक ने अपनी रचनाएं सुनायी। माणिक  की कविताओं में ये मौसम साझा करना चाहता हूँ जैसे प्रेम प्रधान रचना,यथार्थ का बोध कराती रचना किले में कविता ,स्त्री विमर्श को केंद्र में रखती कविता नदी,बिम्ब प्रधान कविता दुपहरी फुरसत में ,सार्वजनिक तौर पर माफीनामे की तरह प्रस्तुत कविता मैं नहीं लिख सका कविता में यथार्थ शामिल थीं।

आखिर में अध्यक्ष की अनुमति से खुला सत्र चला जिसमें स्पिक मैके कार्यकर्ता कृष्णा सिन्हा ने भी कविता पढ़ी और अमन फाउंडेशन से जुड़े रामेश्वर लाल पांड्या ने बांसुरी पर साठ के दशक के फ़िल्मी गीत सुनाये।समापन अब्दुल ज़ब्बार के प्रतिनिधि दोहों के साथ ही उनके लोकप्रिय गीत गंगाजल से हुआ। कविता पाठ के आयोजन त्रिवेणी के बाद संभागी साथियों ने रतन सिंह महल में ही श्रमदान करते हुए हेरिटेज वॉक भी किया।

भगवती लाल सालवी(अपनी माटी के लिए )

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