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''परिवार की स्थापना ही स्त्री पर अधिकार जमाने की मंशा से हुई लगती है ''-प्रो. सविता सिंह


ग्वालियर
दखल विचार मंच और स्त्री मुक्ति संगठन के संयुक्त तत्वावधान में ‘स्त्रियों के प्रति बढ़ती हिंसा और हमारा समाज’ विषय पर खुली बहस का आयोजन स्थानीय चौंबर आफ कामर्स में किया गया. कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के तौर पर बोलते हुए इंदिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय के जेंडर डेवलपमेंट स्टडीज की प्रोफेसर सविता सिंह ने कहा कि हमारे समाज में जो काम करते हुए पुरुष गर्व महसूस करता है उसी काम के लिए स्त्रियों को शर्म उठानी पड़ती है. प्रो सिंह ने आदिम समाज से लेकर वर्तमान पूंजीवादी समाज तक के विकास की प्रक्रिया में स्त्रियों की गुलामी के पूरे इतिहास को विस्तार से बताते हुए कहा कि परिवार की स्थापना ही स्त्री पर अधिकार जमाने तथा उसके प्रजनन और श्रम पर कब्जा जमाने के लिए हुआ था. सतीप्रथा भी पुरुष द्वारा स्त्री को अपनी निजी संपत्ति में तब्दील करने की मानसिकता का ही परिणाम था. 

पूंजीवादी समाज में जैसे-जैसे स्त्रियों के श्रम को बाजार में ले आया  और बेहद सस्ती कीमत पर कभी ठेका मजदूर के रूप में अभी अस्थाई श्रमिक के रूप में रोजगार दिया गया उसी के साथ-साथ उनके साथ दुर्व्यवहार की घटनाएं भी लगातार बढती गयी हैं. भारत जैसे देश में जो काम पुरुष नहीं करते वह भी औरतें सस्ती  मजदूरी पर करने को तैयार हो जाती हैं, स्त्रियों के प्रति हिंसा बढ़ने के एक कारण यह भी है. उन्होंने युद्धों का जिक्र करते हुए कहा कि युद्धों के समय जब हथियारों का बजट बढाया जाता है तो सीधे-सीधे जनता के कल्याण वाली योजनाओं के लिए बजट में कटौती की जाती है और उसका सीधा असर महिलाओं पर पड़ता है. इसीलिए महिलायें युद्ध के खिलाफ होती हैं. आज स्त्रियों के प्रति बढ़ती हिंसा को ख़तम करने का तरीका पूंजीवादी निजी संपत्ति को खत्म कर एक सही अर्थों में कल्याणकारी राज्य निर्माण से ही संभव है. 

ड्रीम वैली कालेज के सहयोग से हुए इस आयोजन में अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए प्रोफेसर ए पी एस चौहान ने कहा कि दसवीं सदी से 1947 तक भारतीय समाज एक स्थिर समाज रहा. लेकिन आजादी के बाद बदलाव आये. इस बदलाव ने स्त्री के संघर्ष को बढ़ाया है. आज इन संघर्षों का ही परिणाम है कि मुझे लगता है कि स्त्रियों, आदिवासियों, गरीबों और दलितों के लिए एक उम्मीद बंध रही है. आधार वक्तव्य देते हुए अशोक कुमार पाण्डेय ने कहा कि ग्वालियर में पिछले दिनों जिस तरह की घटनाएं हुई हैं, वे महिलाओं के प्रति बढ़ती हिंसा की गवाही देती हैं. दुखद यह है कि इनके लिए पुरुष मानसिकता पर सवाल करने की जगह औरतों को ही जिम्मेदार ठहराने की कोशिश की जा रही है.

खुली बहस में भाग लेते हुए महिला एवं बाल विकास विभाग के संयुक्त संचालक सुरेश तोमर ने लिंग चयन सम्बन्धी प्रश्न किये जिनके जवाब में सविता सिंह ने बताया कि लिंग परीक्षण का बढ़ता बाजार इसके लिए जिम्मेदार है. भारत में यह बाजार दो सौ करोड़ का है. बहस में डा अभिनव गर्ग, सुरेश श्रीवास्तव, राकेश अचल, मुस्तफा खान साहिल, अमित शर्मा, पवन साहू, आशीष देवराड़ी, जितेन्द्र विसारिया, फिरोज खान, मनोज, सुमन सहित अनेक लोगो ने हिस्सेदारी की. कार्यक्रम का संचालन किरण पाण्डेय ने किया और आभार प्रदर्शन अजय गुलाटी ने किया.


आशीष देवराड़ी
सदस्य, संयोजन समिति  

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