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‘मणिपद्मक काव्यकृतिक आलोचनात्मक अध्ययन’ पुस्तक का लोकार्पण


डा. ब्रजकिशोर वर्मा ‘मणिपद्म’ पौराणिक संस्कृति के लोकगाथा अथवा कथा के रूप में रचना की संरचना में अपने जीवनकाल के अधिकांश भाग को लगाया। परिणामस्वरूप- लोरिक मनियार, दीनाभद्री, राजा सलहेस, दुलरा दयाल, नैकावनिजारा, कुसुमामालिन मल्लवंश, चुहरमल इत्यादी  जैसे पात्र जो अनादि काल से लोक कंठ में रचा-बसा हुआ है को साहित्यक रूप प्रदान कर लोक साहित्य को मैथिली साहित्य सागर के द्वारा आम जनों तक पहुँचाया। अतएव लोक गाथा हमारी पौराणिक संस्कृति की आज की तारीख तक की पहचान है। मैथिली साहित्य श्रृंगार तांत्रिक, आंचलिक विषयों को आधार मानकर दर्जनों उपन्यास की रचना की। दर्जनों से उपर इनके कथा, नाटक, एकांकी, महाकाव्य, मुक्तक काव्य और निबंध है।

       गत बुधवार को सहरसा स्थित एम.एल.टी. कालेज में  ‘मणिपद्मक काव्यकृतिक आलोचनात्मक अध्ययन’ विषयक पुस्तक का लोकार्पण साहित्य अकादमी सम्मान से पुरस्कृत साहित्यकार प्रो. मायानन्द मिश्र के द्वारा हुआ। कार्यकम की अध्यक्षता मैथिली साहित्यकार डा. महेन्द्र झा ने किया। मुख्य अथिति डा. राजाराम प्रसाद, विशिष्ठ अथिति डा. शैलेन्द्र कुमार झा, डा. ललितेश मिश्रा, डा. विश्वनाथ विवेका, डा. के. एस. ओझा, डा. रेणु सिंह आदि थे। 
    
शुभारंभ पुस्तक के लेखक डा. देवनारायण साह द्वारा आगत अतिथियों के स्वागत भाषण से किया तथा स्वंय लिखित पुस्तक ‘मणिपद्मक काव्यकृतिक आलोचनात्मक अध्ययन’ के महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर प्रकाश डाला। साहित्य अकादमी पुरस्कार से पुरकृत विद्वान प्रो. मायानन्द मिश्र ने कहा कि डा. मणिपद्म बहुविद् साहित्यकार थे। उन्होंने बहुविलक्षण कथा, उपन्यास और काव्यों को लिखा जो लोकगाथा पर आधारित है । मैथिली एवं मिथिला की संस्कृति के विकास के लिए संघर्ष में योगदान देते रहे। ऐसे साहित्यकार की समग्र रचनाओं का आलोचनत्मक अध्ययन लिखकर डा. देवनारायण साह प्राध्यापक एम. एल. टी. कालेज सहरसा ने श्रमपूर्वक कार्य कर चिरस्मरणीय बनाया। डा.महेन्द्र झा ने कहा कि आज महज संयोग है कि साहित्य अकादमी से पुरस्कृत डा. मणिपद्म पर डा. देवनारायण साह द्वारा लिखित पुस्तक का लोकापर्ण भी साहित्य अकादमी से पुरस्कृत  साहित्यकार प्रों. मायानन्द मिश्र के हाथो हुआ है। डा. शैलेन्द्र कुमार रचना की गंभीरता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज की तारीख में मैथिली लेखन कला कम हुआ है लेकिन डा. देवनारायण साह ने शोधार्थी छात्रों के लिए उपयोगी पुस्तक लिखकर मैथिली साहित्य जगत को नया आयाम दिया है। डा. ललितेश मिश्र पुस्तक की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की ओर ध्यान केन्द्रित कर कहा कि मैथिली में जासूसी उपन्यास सर्वप्रथम मणिपद्म ने ही लिखा। 
    
इस अवसर पर डा. राजाराम प्रसाद, डा. रामनरेश सिंह, डा. कुलानन्द झा, डा. दीपक गुप्ता, डा. एस. के ओझा एवं डा. रेणु सिंह ने लोकार्पित पुस्तक को समीचीन बताया तथा अपने विचार व्यक्त किये।
 
अरविन्द श्रीवास्तव
मधेपुरा / सहरसा 
मोबाइल-  9431080862.

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