Featured

मोहन डहेरिया ने पूरी प्रतिबद्धता से अपने समय और समाज की विसंगतियों के खिलाफ आवाज बुलंद की है


पहला ‘सुदीप बनर्जी सम्मान’ मोहन डहेरिया को

सुदीप बनर्जी की स्मृति में हिंदी के प्रतिष्ठित प्रकाशन शिल्पायन द्वारा स्थापित पहला सम्मान जाने-माने कवि मोहन डहेरिया को कान्हा नॅशनल पार्क के पास आयोजित कविता केन्द्रित आयोजन ‘सान्निध्य’ के दौरान वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना तथा लीलाधर मंडलोई के हाथों प्रदान किया गया. इस पुरस्कार की चयन समिति में वरिष्ठ आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी, विष्णु नागर तथा लीलाधर मंडलोई शामिल हैं. चयन समिति की ओर से वक्तव्य देते हुए लीलाधर मंडलोई ने कहा कि पिछले दो-ढाई दशकों से सक्रिय मोहन डहेरिया की कविताओं में कोयला खान मजदूरों का जीवन और संघर्ष जिस तरह से आता है वह हिन्दी की समकालीन कविता में दुर्लभ है. तथाकथित मुख्यधारा से दूर रहकर मोहन डहेरिया ने पूरी प्रतिबद्धता से अपने समय और समाज की विसंगतियों के खिलाफ आवाज बुलंद की है.

अपने पहले ही संकलन ‘कहाँ होगी हमारी जगह’ से ध्यान खींचने वाले मोहन डहेरिया सत्ता केन्द्रों की सूचियों से तो अक्सर गायब रहे लेकिन उनका अपना एक बड़ा पाठक वर्ग है. सञ्चालन करते हुए युवा कवि अशोक कुमार पाण्डेय ने कहा कि मोहन जी के दूसरे संकलन ‘उनका बोलना’ की शीर्षक कविता स्त्री विमर्श के इस शोरगुल के बीच किसी आलोचक को क्यों नज़र नहीं आती, यह समझ पाना मुश्किल है. मोहन जी की कविताओं में निम्न मध्यवर्गीय स्त्रियों का पूरा जीवन सांस लेता है. अध्यक्षता करते हुए नरेश सक्सेना ने शिल्पायन का धन्यवाद व्यक्त करते हुए कहा कि हिंदी की साहित्य सत्ता की संरचना ही कुछ ऐसी है कि मोहन डहेरिया जैसे अंतर्मुखी कवियों तक उसका ध्यान नहीं जाता. उनहोंने मोहन डहेरिया को एक अत्यंत महत्वपूर्ण कवि बताया. इस सत्र में मोहन डहेरिया के अलावा ज्योति चावला, कुमार अनुपम, अशोक कुमार पाण्डेय, शरद कोकास और रंजन कुमार सिंह ने काव्यपाठ किया.

इसके पहले ‘समकालीन कविता की चुनौतियां’ विषय पर हुई परिचर्चा की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि मलय ने कहा कि कविता की अलग से कोई चुनौती नहीं होती. कविता की चुनौती वही है जो समाज की है. आज बाजार और साम्प्रदायिकता ने जिस तरह से मानवीय रिश्तों को तार-तार किया है और समाजवाद के स्वप्न को धुंधला करने की हरचंद कोशिश की जा रही है, उसमें समकालीन कविता को सोचना होगा कि वह हस्तक्षेपकारी स्थिति कैसे बनाए. अरुण कमल ने इन चुनौतियों के बारे में विस्तार से बात करते हुए कहा कि कविता मनुष्य की भाषा है और जब तक मनुष्य रहेगा कविता की ज़रुरत बनी रहेगी. राजेश जोशी ने आधुनिक तकनीक और सूचना क्रान्ति के दौर में कविता के लिए नए स्पेस तलाशने की ज़रुरत पर जोर दिया. सुमन केशरी अग्रवाल ने कविता के शिल्प को लेकर कुछ सवाल उठाये और कहा कि अपनी परम्पराओं से जुड़े बिना कविता जनता तक नहीं पहुँच सकती. सत्र का संचालन करते हुए बद्रीनारायण ने रामचंद्र शुक्ल के हवाले से कहा कि इस समय में कविता की ज़रुरत सबसे ज़्यादा है और कवि कर्म सबसे मुश्किल. अगले सत्रों तक जारी इस परिचर्चा में गिरिराज किराडू ने हस्तक्षेप करते हुए अनेक सवाल उठाये जिन पर अरुण कमल, नरेश सक्सेना, विजय कुमार, अशोक कुमार पाण्डेय, बद्री नारायण, आशीष त्रिपाठी सहित कई लोगों ने हस्तक्षेप किया.

17 अगस्त से 19 अगस्त तक चले इस तीन दिवसीय आयोजन के विभिन्न सत्रों में प्रांजल धर,संध्या नवोदिता, बसंत त्रिपाठी, नासिर अहमद सिकंदर, असंग घोष, शिरीष कुमार मौर्य, वंदना शर्मा, विवेक मिश्र, पंकज राग, वागीश सारस्वत, हरिओम राजोरिया, गिरिराज किराडू, प्रताप राव कदम, निरंजन श्रोत्रिय, मिथिलेश श्रीवास्तव, मोनिका कुमार, सुरेश यादव, आशीष त्रिपाठी, संजय कुंदन, अंजू शर्मा, देवेश चौधरी, बद्रीनारायण, सुमन केशरी अग्रवाल, लीलाधर मंडलोई, विजय कुमार, राजेश जोशी, अरुण कमल, नरेश सक्सेना तथा मलय ने काव्यपाठ किये.

अपने पूरे स्वरूप में पूरी तरह से अनौपचारिक इस आयोजन की सबसे बड़ी खासियत वह सहजता और आत्मीयता रही जो अक्सर अकादमिक आयोजनों से दूर रहती है. शहर से दूर सतपुडा की पहाड़ियों और जंगलों के बीच हिन्दी की वरिष्ठतम पीढ़ी से लेकर युवतम पीढ़ी के बीच जिस तरह का सान्निध्य स्थापित हुआ वह अपने-आप में एक दुर्लभ दृश्य था. सत्रों के बाद घास में मैदान में जमीन पर गोल बैठकर कवियों ने जनगीत गाये और आप उस सहजता का अनुमान कर सकते हैं जहां अरुण कमल जैसे कवि भोजपुरी के तमाम लोकगीतों को गाते हैं और ज्योति चावला तथा प्रांजल धर जैसे बिलकुल युवा कवि उनकी संगत देते हैं. पंजाबी,बुन्देली,भोजपुरी के लोकगीतों के बहाने जब बात निकलती है तो लोक के विशेषग्य कवि बद्रीनारायण लोकगीतों के पूरे समाजशास्त्र पर जिस अधिकार के साथ बात करते हैं वह किसी सेमीनार में संभव ही नहीं था. मध्यप्रदेश इप्टा के राज्य सचिव हरिओम राजोरिया के रंग में आते ही पूरी बैठक जैसे सांस्कृतिक टीम में बदल जाती है और जनगीतों से पूरा माहौल गूँज उठता है.

इसी बीच अचानक वह गंभीर होकर अपने साथी और देश के महत्वपूर्ण जनगीत गायक रवि नायर के पिछले दिनों गुजरने की बात करते हैं और पूरा परिदृश्य रवि नायर के गीतों से गूँज उठता है. सत्रों में रह गयी बातें खाने की मेज से जंगलों के उन रास्तों तक जारी रहती हैं जहां रात के दो-तीन बजे तक कवि टहलते रहते हों मानों शहरों के बंधन से दूर प्रकृति के हर दृश्य को स्मृति में कैद कर लेना चाहते हों. बनारस हिन्दू विश्विद्यालय के प्राध्यापक और कवि-आलोचक आशीष त्रिपाठी कहते हैं कि जितना इन तीन दिनों में कविता और उसकी चुनौतियों को लेकर बहस हुई है वह हफ़्तों के अकादमिक सेमीनार में भी संभव नहीं तो युवा कवि प्रांजल धर और मोनिका कुमार कहते हैं कि हमारे लिए तो यह कविता की पूरी कार्यशाला थी. दिल्ली से आये विवेक मिश्र इसे अपने जीवन का एक अविस्मरणीय क्षण बताते हैं तो ज्योति चावला इसे युवा कवियों के लिए अपने वरिष्ठों से सीधे संवाद का अप्रतिम अवसर.   

अंतिम सत्र में आभार व्यक्त करते हुए शिल्पायन के ललित शर्मा ने कहा कि कविता केन्द्रित इस आयोजन का उद्देश्य कवियों को एक मंच पर लाकर समकालीन कविता के विभिन्न मुद्दों पर ज़रूरी बहस-मुबाहिसे का अवसर उपलब्ध कराना है. उन्होंने इसे हर साल कराये जाने की घोषणा करते हुए कहा कि कविता आज इस अमानवीय होते जाते समय में बेहद ज़रूरी है और समकालीन कवियों को आगे आकर यह चुनौती स्वीकारनी ही होगी.



अशोक कुमार पाण्डेय 
  • जन्म:-चौबीस जनवरी,उन्नीस सौ पिचहत्तर 
  • (लेखक,कवि और अनुवादक के साथ ही प्रखर कामरेडी छवी के धनी.)
  • भाषा में पकड़:-हिंदी,भोजपुरी,गुजराती और अंग्रेज़ी 
  • वर्तमान में ग्वालियर,मध्य प्रदेश में निवास 
  • उनके ब्लॉग:http://naidakhal.blogspot.com/
  • http://asuvidha.blogspot.com
सदस्य संयोजन समिति,कविता समय
   
   

Comments