''राहुल सांकृत्यायन के बाद किसी ने भी इतना काम नहीं किया, जितना डा. रामविलास शर्मा ने।''-डा. खगेन्द्र ठाकुर
डा. रामविलास शर्मा की जन्मशती पर डा. खगेन्द्र ठाकुर का व्याख्यान
- - हिन्दी जनता की भाषा है।
- - संस्कृति का निर्माता वह है जो मेहनत करता है।
- - किताबों को पढ़कर हम अपने समय की समस्या का हल निकाल सकते हैं।
पटना
बिहार प्रगतिशील लेखक संघ के तत्वावधान में केदार भवन, पटना के सभागार में डा. रामविलास शर्मा की जन्मशती के अवसर पर डा. व्रजकुमार पाण्डेय की अध्यक्षता में एक व्याख्यान का आयोजन किया गया। मुख्य वक्ता डा. खगेन्द्र ठाकुर ने इस मौके पर विस्तार पूर्वक डा. रामविलास शर्मा से जुड़े प्रसंग तथा उनके जीवन एवं कृतित्व पर बोलते हुए कहाकि डा. शर्मा का लेखन कविता से लेकर आलोचना, इतिहास, दर्शन तथा भाषा विज्ञान तक फैला हुआ है। राहुल सांकृत्यायन के बाद किसी ने भी इतना काम नहीं किया, जितना डा. रामविलास शर्मा ने। उन्होंने भारतीय संस्कृति के विकास में हिन्दी जाति की भूमिका और हिन्दी नवजागरण की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट किया।
डा. ठाकुर ने कहा कि आज के प्रगतिशील आन्दोलन व राष्ट्रीय जागरण अभियान में डा. रामविलास शर्मा का योगदान प्रमुख रहा है। उन्होंने भारतेन्दु, प्रेमचंद, रामचंद्र शुक्ल और निराला पर काफी लिखा। डा. ठाकुर ने कहा कि ‘ मनुष्य ने जब भाषा प्राप्त कर ली तो उसकी सर्जनात्मक क्षमता बढ गयी’ ऐसा रामविलास शर्मा मानते थे, आग जहाँ है वहाँ सूरज के डूबने के बाद भी रौशनी आती है... आग और फिर भाषा ने मानव सभ्यता के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। डा. खगेन्द्र ठाकुर ने कहा कि डा. रामविलास शर्मा का प्रारंभिक जीवन कविता से शुरू हुआ। अज्ञेय द्वारा संपादित ‘तारसप्तक’ के वे कवि थे। उनके संग्रह ‘रूप तरंग’ नाम से छपे थे। डा. शर्मा ने भाषा विज्ञान पर कई पुस्तकें लिखी, पहली बार यह विज्ञान ग्रियर्सन और सुमिति कुमार चटर्जी के दायरे से बाहर निकला। आर्य और द्रविड़ भाषा में कितना संबन्ध है इसे भी डा. शर्मा ने रेखांकित किया हैं... केदारनाथ अग्रवाल उनके प्रिय कवि थे। डा. खगेन्द्र ठाकुर ने रामविलास शर्मा के कई संस्मरणों को सुनाया एवं उनके साथ बिताये क्षणों को स्मरण कर उन्हें नमन किया।
कार्यक्रम के अध्यक्ष डा. व्रजकुमार पाण्डेय ने अपने विचारों को रखते हुए कहा कि डा. रामविलास शर्मा का इतिहास लेखन में प्रवेश न संयोग की बात है , न अनधिकार प्रयास है। डी. डी. कौशाम्बी एक महान गणितज्ञ होते हुए भी उन्होंने भारतीय इतिहास में माक्र्सवादी विचारधारा का प्रवेश कराया। जिसका विकास आगे चलकर भारतीय इतिहास लेखन पर पड़ा। डा. रामविलास शर्मा ने 1857 के मुक्ति आंदोलन पर जो किताब लिखी है व अन्य लोगों द्वारा लिखी गई किताबों में श्रेष्ठ मानी गई है।
बिहार प्रलेस के महासचिव राजेन्द्र राजन ने कहा कि आज के सामयिक परिस्थिति पर रामविलास जी ने बहुत कुछ लिखा है। डा. शर्मा की इतिहास दृष्टि जिस प्रगतिशील चेतना के साथ हमारे समक्ष आती है, वह काबिले-तारीफ है।इस अवसर पर कवि शहंशाह आलम, अरविन्द श्रीवास्तव, राजकिशोर राजन, अरुण शीतांश, डा.पूनम सिंह, रवीन्द्रनाथ राय, देव आनंद, सुरेन्द्र भारती आदि ने भी अपने-अपने विचारों को व्यक्त किया।
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