किसान विरोधी समय में ‘कथादेश’ का किसान विशोषंक जरूरी पहल
लखनऊ, 10 जून।
यह समय ऐसा है जब किसान जो हमारी मुख्य उत्पादक शक्ति है, उसे तबाह व बर्बाद किया जा रहा है, वहीं कॉरपोरेट को खूली छूट दी जा रही है। यह किसान विरोधी समय है। यह हमारे शासक वर्ग की आर्थिक नीतियां हैं जिनकी वजह से किसान आत्महत्या को विवश हैं। तीसरी दुनिया के शासक अमरीका के इशारे पर इन्हीं विनाशकारी नीतियों को लागू करने में लगे हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हिन्दी समेत अन्य भारतीय भाषा तथा विश्व साहित्य से गांव, गरीब और किसान गायब होते जा रहे हैं। ऐसे में ‘कथादेश’ का किसान के जीवन के यथार्थ को फोकस करता विशेष अंक का आना एक स्वागतयोग्य पहल है।
यह विचार जाने माने आलोचक व कवि चन्द्रेश्वर ने ‘हमारा समय, साहित्य और किसान’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में व्यक्त किये। जन संस्कृति मंच ने संगोष्ठी का आयोजन आज हिन्दी की महत्वपूर्ण पत्रिका ‘कथादेश’ के विशेषांक को केन्द्रित करके किया था। इस विशेष अंक का संपादन चर्चित कथाकार सुभाष चन्द्र कुशवाहा ने किया है। चन्द्रेश्वर का कहना था कि ‘कथादेश’ का यह अंक किसान जीवन की बुनियादी समस्याओं, उनके अंतर्विरोधों की, स्थानीय व वैश्विक परिप्रेक्ष्य में, गहरी पड़ताल करता है।
‘कथादेश’ के इस अंक के अतिथि संपादक सुभाष चन्द्र कुशवाहा का कहना था कि हमारा बहुसंख्यक समाज आज हाशिए पर है। किसान इस समाज का बड़ा हिस्सा है। लेकिन यह समाज घोर उपेक्षा का शिकार है। हमारे यहां प्रेमचंद, रेणु से लेकर नागार्जुन व केदार तक का साहित्य इसी हाशिए के जीवन व संघर्ष की गाथा है। आज इस हाशिय के लोगों को न सिर्फ राजनीति की ओर से उपेक्षित किया जा रहा है बल्कि हमारे साहित्य में भी इनके प्रति उदासीनता है। सच्चाई तो यही है कि जिसे आज हाशिए का समाज कहा जा रहा है, वही ईमानदार व देशभक्त है। इनके साथ खडा होकर ही साहित्य अपने को समृद्ध कर सकता है।
स्ंागोष्ठी को वरिष्ठ कथाकार व ‘निष्कर्ष’ के संपादक गिरीश चन्द्र श्रीवास्तव, कवि भगवान स्वरूप कटयार, नाटककार राजेश कुमार, प्रगतिशील महिला एसोसिएशन की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ताहिरा हसन, विचारक आर के सिन्हा आदि ने भी संबोधित किया। संगोष्ठी का संचालन जसम के संयोजक कौशल किशोर ने किया।
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