चैथा राष्ट्रीय सम्मेलन
26-28 मई 2012
देहरादून, उत्तराखण्ड
राष्ट्रीय वन-जन श्रमजीवी मंच
प्रिय साथी,
हमें
यह बताते हुए बेहद हर्ष हो रहा है कि मंच का चैथा राष्ट्रीय सम्मेलन
दिनांक 26 से 28 मई 2012 को देहरादून उत्तराखण्ड में आयोजित किया जा रहा
है। बीस राज्यों के सदस्य संगठन एवं दोस्त संगठन जो कि पचास से अधिक
वनक्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं इस सम्मेलन में भाग लेंगे। मज़दूर
संगठनों के राष्ट्रीय महासंघों को भी इस सम्मेलन में आमंत्रित किया जा रहा
है। पड़ौसी देशों जैसे नेपाल, बांग्लादेश व पाकिस्तान से वनाधिकार आंदोलनों
के प्रतिनिधिगण और अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों की भी इस सम्मेलन में
नुमाइंदगी रहेगी। दिनांक 26 मई को एक जनसुनवाई कार्यक्रम होगा, जिसका विषय
है ‘‘राष्ट्रीय पार्क एवं सेन्चुरी में वनाधिकार कानून की दशा’’। जनसुनवाई
सम्पन्न होने के बाद सांगठनिक सम्मेलन की विधिवत शुरुआत की जाएगी।
जैसा कि आपको विदित है कि मौज़ूदा दौर में वनाधिकार आंदोलन एक
महत्वपूर्ण दौर से गुज़र रहा है। यह चुनौतीपूर्ण दौर वनाश्रित समुदायों और
वनों का भविष्य तय करेगा। अर्थात वन एवं वन में रहने वाले श्रमजीवी समुदाय
किसके अधीन रहेंगे, भारतीय राजसत्ता के जो कि नवउदारवादी पूंजीवादी
शक्तियों के अंतर्गत बड़ी बड़ी कम्पनियों की जकड़न में है या फिर सामुदायिक
स्वशासन के अंतर्गत एक जनवादी ढांचे में। अनुसूचित जनजाति एवं अन्य
परम्परागत वन निवासी (वनाधिकारों को मान्यता कानून)-2006 के संसद द्वारा
पास किए जाने के बाद कहां तो आज़ादी मिलनी थी, लेकिन कहां देशभर के जंगल
क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी व अन्य वनाश्रित समुदाय लगातार चारों तरफ
से संगठित आक्रमण झेल रहे हैं। वनाश्रित श्रमजीवी समुदायों पर वनप्रशासन और
उनकी सहयोगी बड़ी कम्पनियां, अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाऐं जैसे जाईका,
वनमाफिया, सांमती और अन्य निहित स्वार्थी शक्तियां जिस के अंदर गैर कानूनी
खनन के ठेकेदार भी शामिल हैं के हमले लगातार बढ़ रहे हैं और प्रमुख
राजनैतिक शक्तियां भी इन हमलों को मदद कर रही हैं। इस चैतरफा हमले ने
राजनैतिक व सामाजिक संकट को और गहरा दिया है और इससे भी खतरनाक पर्यावरणीय
संतुलन के संकट को भी कई गुणा बढ़ा दिया है, जो कि दुनिया को एक भयंकर
त्रासदी की तरफ ले जा रहा है। जिसके कारण मुनाफाखोरी और प्राकृतिक संसाधनों
की लूट के खिलाफ पर्यावरणीय न्याय का सवाल एक महत्वपूर्ण राजनैतिक मुद्दा
बन गया है। लेकिन इस चैतरफा हमले के खिलाफ पूरे देश के पैमाने पर एक
शक्तिशाली जनप्रतिरोध आंदोलन भी मजबूती से बढ़ रहा है और कुछ क्षेत्रों में
तो इन प्रतिरोध आंदोलनों से मौजूदा प्रभुत्ववादी व्यवस्था के खिलाफ एक
वैकल्पिक व्यवस्था बनाने की प्रक्रिया भी चल रही है। वनव्यवस्था के मुद्दे
पर राजसत्ता और समुदायों के बीच एक सीधी टक्कर है।
वनाश्रित समुदाय सत्ता
के आधीन नहीं रहना चाहते। आज समुदाय वनों के अंदर अपना स्वशासन चाहते हैं।
यह भी साफ ज़हिर हो रहा है कि संघर्षशील जनता की राजनैतिक चेतना में
अभूतपूर्व विकास हो रहा है, जिसके तहत वे न केवल प्रतिरोध के नए तरीके भी
विकसित कर रहे हैं, बल्कि इसके साथ-साथ अपनी आजीविका और संसाधनों को बचाए
रखने के लिए वैकल्पिक रास्ते भी तैयार कर रहे हंै। इसी के साथ-साथ वे
भविष्य के लिए सांगठिनक प्रक्रिया के भी विकल्प तलाश रहे हैं। ऐसे संघर्ष
देश के कई क्षेत्रों में जैसे उत्तरप्रदेश, बिहार, झाड़खंड और छत्तीसगढ़
में फैले कैमूर क्षेत्र में, रीवा, तराई और भारत-नेपाल सीमा स्थित
उत्तरप्रदेश और उत्तराखण्ड तक फैले तराई क्षेत्र में, असम, हिमाचल प्रदेश,
उत्तराखंड़, कर्नाटक, तमिलनाडु की जवारी पर्वत श्रृंखला आदि क्षेत्रों में
चल रहे हैं।
इसी के साथ-साथ नवउदारवादी, पूंजीवादी हमले के खिलाफ जो कि
खेती की जमीन लोगों से छीनना चाहते हैं, उड़ीसा, झाड़खण्ड, आंध्रप्रदेश,
केरल, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान आदि प्रदेशों में जुझारू जनसंघर्ष भी
चल रहे हैं। इसी प्रक्रिया के चलते एक और महत्वपूर्ण आंदोलन की शुरुआत हुई
है, जिसे वनाधिकार आंदोलन के अंदर महिला समुदायों ने स्वतंत्र रूप से शुरु
किया है। महिला शक्ति वनाधिकार आंदोलनों को एक नया आयाम भी दे रही है,
जिसके तहत वैकल्पिक सामुदायिक वन-व्यवस्था का स्वरूप भी निकलकर सामने आ रहा
है। इस आंदोलन के तहत महिला वनाधिकार एक्शन कमेटी का गठन हुआ है, जो कि
क्षेत्रीय स्तर से राष्ट्रीय स्तर तक फैल गई है। इन चल रहे महत्वपूर्ण
आंदोलनों के साथ-साथ राष्ट्रव्यापी मछुआरों के संघर्ष, गैरकानूनी खनन के
खिलाफ आदिवासियों के संघर्ष, एस0ई0जेड और भूमि अधिग्रहण के खिलाफ किसान
अंादोलन मौजूदा नवउपनिवेशवादी व्यवस्था के खिलाफ एक नई राजनैतिक ज़मीन
तैयार कर रहे हैं।
इस एतिहासिक प्रक्रिया को संज्ञान में लेते हुए राष्ट्रीय वन-जन श्रमजीवी
मंच एक सटीक कार्ययोजना बनाकर सांगठनिक प्रक्रिया को और मजबूत करने का
निश्चय लेता है। ताकि वनाधिकार आंदोलन को और सशक्त बनाने के लिए एक गतिशील
और दीर्घकालिक राजनैतिक नेतृत्व तैैयार किया जा सके। मौज़ूदा परिस्थिति भी
संगठन निर्माण के ढांचे में बुनियादी परिवर्तन करने की मांग करती है।
आंदोलन के नेतृत्व में विशेषकर महिलाओं और युवाओं में से नई शक्तियां उभर
कर सामने आ रही हैं। यह नई शक्तियां राजसत्ता को एक राजनैतिक चुनौती दे रही
हैं। परम्परागत तरीके से चल रही सत्ता के सामने आवेदन-निवेदन को छोड़कर
समुदाय मौज़ूदा राजनैतिक सामाजिक आर्थिक व्यवस्था में बुनियादी परिवर्तन
की चुनौती दे रहे हैं। इस सच्चाई को समझते हुऐ हमें सचेत रूप से संगठन
निर्माण की प्रक्रिया में प्रभावी कदम उठाने होंगे। मौजूदा राजनैतिक
चुनौतियां भी सांगठनिक प्रक्रिया में महत्वपूर्ण परिवर्तन की मांग कर रही
है। समय की इस मांग को देखते हुए सामुदायिक नेतृत्व में बढ़ती हुई चेतना
को सांगठनिक ढांचे में प्रतिफलित करना होगा, ताकि आंदोलन और नेतृत्व एक
दूसरे के वास्तविक रूप से परिपूरक हो सकें। केवल सांकेतिक रूप से समुदायिक
नेतृत्व को टिकाये रखना प्रभावी नहीं होगा। संघर्ष के अंदर से जो सामुदायिक
नेतृत्व विकसित हो रहा है उन्हें अग्रिम पंक्ति में लाना होगा। उभरते हुए
इस नए नेतृत्व के अंदर और खासकर महिलाओं और युवाओं के अन्दर जो स्वयं
सशक्तिकरण की प्रक्रिया चल रही है, इसे और सशक्त करना होगा। जिससे सांगठनिक
प्रक्रिया भी राजनैतिक चुनौती को लेने के लिए और मज़बूत होगी। इस संदर्भ
में राष्ट्रीय वनजन श्रमजीवी मंच का आगामी सम्मेलन निम्नलिखित मुद्दों पर
चर्चा करके निर्णय लेगाः-
1. नई उपनिवेशवादी शक्तियों के खिलाफ प्राकृृतिक संपदा आधारित परम्परागत
श्रमजीवी समाज के सामूहिक संघर्ष का राजनैतिक ऐजेंडा तैयार करना।
2.
देशभर में सामुदायिक नेतृत्व द्वारा संचालित वैकल्पिक वन स्वशासन व्यवस्था
को कायम करने हेतु सामुदायिक नेतृत्व की स्वयं सशक्तिकरण प्रक्रिया को
मजबूत करना।
3. संगठन और आंदोलन में स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक महिला नेतृत्व को मजबूत करना।
4.
प्राकृतिक संपदा आधारित उत्पादन व पुर्नउत्पादन प्रक्रिया, जैसेः वानिकी,
खेती बाड़ी, मत्सय उद्योग एवं खनन में सामूहिक प्रक्रिया को मज़बूत करना
तथा इसका प्रचार-प्रसार करना।
5. प्राकृतिक संपदा आधारित श्रमजीवी समाज के संगठनों के बीच महासंघ
तैयार करना तथा श्रमजीवी आंदोलनों के साथ व्यापक एकता स्थापित करना।
इन
महत्वपूर्ण राजनैतिक व सांगठनिक मुद्दों पर संगठन के अंदर गंभीर रूप से
चर्चा करना ज़रूरी है। यह भी ज़रूरी है, कि इन मुद्दों पर तमाम सहयोगी
संगठन जो कि प्राकृतिक सम्पदा के क्षेत्र में कार्यरत हैं और इसके साथ-साथ
व्यापक श्रमजीवी समाज को संगठित करने में भी कार्यरत हैं, उन सभी के साथ भी
चर्चा करके सहमति बनाना ज़रूरी है। ज्ञात रहे कि इस दिशा में 15 दि0 2011
को संसद के सामने वनों व प्राकृतिक संसाधनों पर समुदाय के अधिकार की मांग
पर एक विशाल रैली का आयोजन किया गया था, जिसमें राष्ट्रीय वन-जन श्रमजीवी
मंच की अगुआई में ऐसे तमाम संगठनों ने भाग लिया था। मछुआरों का राष्ट्रीय
संगठन, खनन क्षेत्र में कम्पनियों की पूंजीवादी लूट के खिलाफ संघर्षरत
संगठन, भूमिहीन किसान और खेतमजदूरों के संगठन, औद्योगिक क्षेत्र में
कार्यरत ट्रेड यूनियन संगठन तथा मानव अधिकार संगठनों के प्रतिनिधियों ने इस
रैली में भागीदारी की थी। तत्पश्चात 16 दिसम्बर 2011 को मावलंकर हाल नई
दिल्ली में एक सम्मेलन भी आयोजित किया गया था, जिसमें ‘‘फैडरेशन आफ नेचुरल
रिसोर्स बेस्ड ट्रेडिशनल वर्किंग पिपुल’’ (प्राकृतिक संपदा आधारित
परम्परागत श्रमजीवी जन का महासंघ) की स्थापना की गई। राष्ट्रीय वन-जन
श्रमजीवी मंच के चैथे राष्ट्रीय सम्मेलन में इस महासंघ को सशक्त करने का
मुद्दा भी एक अहम् मुद्दा होगा। राष्ट्रीय वन-जन श्रमजीवी मंच की राष्ट्रीय
समिति द्वारा लिए गए एक महत्वपूर्ण फैसले के तहत हम सभी दोस्ताना श्रमजीवी
संगठनों के साथ मिलकर भावी कार्यक्रमों को तय करेंगे, ताकि तमाम श्रमजीवी
समाज के लोगों के बीच व्यापक एकता बनाने की प्रक्रिया को विकसित किया जा
सके।
चैथे राष्ट्रीय सम्मेलन को सुचारू रूप से संगठित करने के लिए एक आयोजन
समिति का भी गठन किया है। जिसमें सभी संघर्षरत क्षेत्रों के प्रतिनिधी
शामिल हैं। इस आयोजन समिति में बाकी अन्य क्षेत्रों के साथियों को भी उनकी
सहमति से शामिल किया जाएगा। आयोजन समिति की आगामी बैठक अप्रैल माह में
आयोजित की जाएगी। इस संदर्भ में हम ये मानते हैं, कि आप जैसे संघर्षरत
संगठनों की भागीदारी सम्मेलन को सफल बनाने में सहयोग करेगी। अतः आप सभी को
इस सम्मेलन में सादर आमंत्रित करते हुए आशा करते हैं, कि भविष्य के संघर्ष
को मजबूत करने की इस प्रक्रिया में आपका सक्रिय सहयोग अवश्य प्राप्त होगा।
कृप्या हमारे आमंत्रण को स्वीकार करते हुए और अपनी भागीदारी सुनिश्चित करते
हुए इसमें शामिल होने की सहमति से हमें अवगत कराऐं। सम्मेलन के निश्चित
स्थान और कार्यसूचि के बारे में विस्तृत जानकारी आपको अगले पत्र में
प्रेषित की जाएगी।
आपको सविनय अवगत कराया जाता है कि सीमित संसाधनों के कारण हम आपके
यात्रा खर्च को वहन करने में अस्मर्थ होंगे। अलबत्ता देहरादून में आपके
रहने व खानपान की व्यवस्था आयोजन समिति करेगी।
अब टूट गिरेंगी ज़जीरें, अब जि़न्दानों की खै़र नहीं
वो दरिया झूम के उठ्ठे हैं, तिनकों से ना टाले जाऐंगे - फै़ज़ अहमद
4th NATIONAL CONFERENCE
26-28, MAY 2012
DEHRADUN, UTTARAKHAND
NATIONAL FORUM OF FOREST PEOPLE AND FOREST
WORKERS, (N.F.F.P.F.W.)
Dear Friends,
It is our great pleasure to invite you to the 4th National
conference of National Forum of Forest People and Forest Workers to be held on
26-28 May 2012 in Dehradun Uttarakhand. Delegates from constituent
groups/organizations and fraternal organizations from 20 states, representing
more than 50 forest regions will participate in the conference. On 26th May, a
one day public hearing will be organized on the issue of "National Parks
and Forest Rights Act”. Formal proceeding of the organizational conference will
start after the Public Hearing.
As you may be aware that Forest
right movement today is passing through a critical phase. This is also very
challenging period which will decide the fate of forest people and that of the
forest in India i.e. whether the forest and forest people should remain under
the domain of Indian state which is under seize of big corporations, under the
neo-liberal regime or should it be within a democratic framework under a system
of people's governance. With the passing of the legislation on Forest Rights
Act (FRA), the forest based working communities have come under increasing
attack from the forest bureaucracy
supported by mafias, local feudal and vested interests (including illegal mining
contractors) in a very organized manner across the country. This attack is also
supported by the dominant political class. This has given rise to significant growth of resistance movements
against such attack across the country. This resistance movement in some areas
has grown in developing alternatives against the present dominant regime. There
is a direct conflict of interests between the communities and the Indian State
on the issue of forest governance. It is also evident that political
consciousness of struggling people has grown unprecedentedly manifesting in newer methods of resistance
and in creating alternatives for the
protection of resources and that of livelihood and also for the future
organizational process. Such struggles are going on in Kaimur region of UP,
Bihar, Jharkhand and Chattisgarh, Rewa, Lakhimpur Khiri UP Assam , Himanchal Pradesh, Uttarakhand,
Karnataka, Javari hills Tamil Nadu. Along with
this strong resistance movements are going on in Odisha, Jharkhand, Andhra
Pradesh, Kerela, Gujarat, Maharashtra ,
Rajasthan, Another significant process that has been started independently by
women groups to attain their forest rights with the formation of “women forest
rights action committee". Along with this the movement of fish workers
struggle, tribal struggle against illegal mining and peasant movements against
SEZ and land acquisition are creating new political space against the
neo-liberal regime.
NFFPFW recognizes
this historic process and resolves to
take appropriate action plan to strengthen the organizational process so that
it can provide a sustainable political leadership to forest rights movement
through a dynamic process. Such a situation has also necessitated basic changes
in structure of organization building as new forces are emerging in creating
new form of leadership especially among the women and youth. This phenomenon is
urgently needed to be consciously incorporated in the organizational building
process. The present political
challenges demand some major changes in the organizational process also. The
emerging consciousness of the community leadership must be reflected in the
organizational structure, so that the movement and the leadership correspond to
each other realistically. Symbolic community leadership will not be effective.
The leadership which has grown in the struggle process needs to be brought in
the forefront. Self strengthening of the emerging new leadership from the
communities and especially that of women and young groups has to be
strengthened in the organizational process. In this context the national
conference of NFFPFW will emphasize on these key issues:
1. Setting the
political agenda for the collective struggle by the natural resource based
traditional working people against the neo-liberal regime.
2. Strengthening
the self strengthening process of community leadership in the forest rights
movement and also in the organization process to create an alternative forest
governance system under the community leadership across the country.
3. Strengthening
of women leadership at all levels in the movement and in the organization from
local to national level.
4. Propagating
and strengthening the collective process of production and reproduction of
natural resources i.e. forestry, agriculture, fisheries and mining.
5. Strategic
alliance building with other natural resource based working people’s
organizations focusing on vulnerable areas and with the workers' movements.
These serious political and organizational issues in regards
to forest right movement needs to be discussed within the organization and it
is equally important to discuss all such issues with the fraternal
organizations who are working in the field of natural resources and with the
working people in general. As you may be aware that on 15th December 2011 a
mass protest rally on forest rights was held before the Parliament and this was
followed by the formation of “Federation of Natural Resource Based Traditional
Working People" in the founding convention held on 16th December 2011 at
Mavlankar Hall, New Delhi .
The strengthening of Federation will be a crucial issue for discussion in the
national conference of NFFPFW. The national committee has taken a decision to
involve fraternal organizations and other alliance organizations in future
programmes so that formation of a wider alliance of the working people could be
developed. An organizing committee for the fourth conference of NFFPFW has been
formed with representation from all the struggling areas that also needs to be
expanded with the consent of other comrades.
In this context, we understand that your participation will
be very crucial in this conference. We cordially invite you to participate in
this conference and help the process to take forward in facing the challenges
of neo-liberal regime attacking our natural resources. We will appreciate an
early confirmation from your end.
The details of venue will be followed in the next letter.
Kindly block your dates in advance.
In Solidarity,On behalf of Organizing Committee,
Gautam Bandhopadhaya ( M.P/ Chhatisgarh), Munnilal, Ganga
Arya ( Uttarakhand), Matadyal, Rani (
M.P and Bundelkhand UP), Rajnish, Shanta Bhattaracharjee, Roma, Ashok
Chowdhury, Ramchandra Rana, Ramesh Shukla, Nathu kol, Rajkumari Bhuiya (Uttar
Pradesh), K.Krishnan, Amni (Tamil Nadu), Guman singh (Himachal Pradesh),
Sushovan Dhar (West Bengal), Kishore Thapa, Shiva Sonwar (Gorkhaland), Vijay
Jena (Odisha), Sarang Dhabekar (Maharashtra), Roy David (Karnataka), Sanichar
Agaria, Vasavi Kiro (Jharkhand), Mamta Kujur (Chattisgarh), Vedanta, Mridula
(Krishak Mukti Sangram Samiti, Assam).
Dehradun is the capital city of state of Uttarakhand. 65% of
the state is forest area and there have been many historic forest right
movements in different regions of Uttarakhand during the colonial period and
also in Indipendent India .
Approach to Dehradun via Road, Air and Train route: Dehradun is well connected by railway from
Chennai,Trivandram,Vijaywada,Nagpur,Itarsi,Bhopal,Jhansi,Gaya,Agra,Delhi,Haridwar,Lucknow,Howrah,Mumbai,Vadodra,Ahmedabad,Indor,Ujjain,Kota.
Nearest major railway junction is Saharanpur.There are regular bus connection
from Delhi (Anand Vihar I.S.B.T) and two daily
flights from delhi .
Since May will be tourist season for the hills we would request you to book
your ticket at the earliest.
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