साहित्य अकादमी में
सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक का
नार्वे में
हिंदी लेखन
पर व्याख्यान
नार्वे
३१ मार्च को
साहित्य अकादमी
दिल्ली में
प्रवासी मंच
के तहत
नार्वे से
पधारे प्रवासी
साहित्यकार और 'परिचय' (१९८०-१९८५)
और 'स्पाइल-दर्पण' (१९८८
से) के
संपादक सुरेशचन्द्र
शुक्ल ने
नार्वे में
हिन्दी लेखन
पर व्याख्यान
दिया। कार्यक्रम
का शुभारम्भ
साहित्य अकादमी
के डॉ.
ब्रिजेन्द्र त्रिपाठी द्वारा प्रवासी मंच
और प्रवासी
मंच में
व्याख्यान देने वाले साहित्यकार का
परिचय देकर
किया।
कार्यक्रम में दिल्ली
विश्वविद्यालय, जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय,
साहित्य अकादमी
के सदस्यों
के अतिरिक्त
प्रसिद्ध विद्वान
डॉ. कमल
किशोर गोयनका,
डॉ विनोद
सेठ, अमर
उजाला के
हरी प्रकाश,
राष्ट्र किंकर
के संपादक
और नार्वे
पर संस्मरण-पुस्तक 'इबसेन
के देश
में' के
लेखक विनोद
बब्बर, वैश्विका
साप्ताहिक के संपादक, संजय मिश्र,
स्पाइल-दर्पण
दिल्ली के
प्रतिनिधि और संपादक मंडल के
सदस्य डॉ.
सत्येन्द्र कुमार सेठी और अन्य
लोगों ने
प्रश्नोत्तर के दौरान सक्रिय भागीदारी
से व्याख्यानमाला
को बहुत
रोचक बना
दिया। अनेक
सुझावों, प्रश्नों
और संवाद
ने गोष्ठी
में जिज्ञासाओं
और समस्याओं
को हल
करने के
लिए संवाद
बनाए रखने
के लिए
सामाजिक मीडिया
में परस्पर
संबंधों को
बढाने की
बात की
गयी।
सुरेशचंद्र शुक्ल ने
अपने व्याख्यान
में नार्वे
में मूल
से नार्वेजीय
भाषा और
हिन्दी मूल
से नार्वेजीय
भाषा में
अनुवाद पर
ओस्लो में
होने वाले
सेमीनार, मासिक
लेखक गोष्ठियों
तथा हिन्दी
भाषियों और
क्षत्रों के
लिए लेखन
कर्मशाला में
नार्वे के
हिन्दी लेखन
मंच, भारतीय-नार्वेजीय सूचना
एवं सांस्कृतिक
फोरम नार्वे
का कार्य
उत्कृष्ट है।
उन्होंने भारतीय,
प्रवासी संस्थाओं
द्वारा की
जा रही
हिन्दी, पंजाबी
और अन्य
भारतीय भाषाओँ
की सेवा
के लिए
किये जा
रहे कार्यों
पर संतोष
व्यक्त करते
हुए उसे
सराहनीय बताया।
सुरेशचंद्र शुक्ल ने अपनी सम्पादित
प्रवासी कहानियों
के संकलनों
'प्रतिनिधि प्रवासी कहानियां' (सन २००४
में प्रचारक
बुक क्लब,
वाराणसी, उत्तर
प्रदेश से
प्रकाशित) और 'समसामयिक प्रवासी कहानियां'
सहित नार्वे
के प्रवासी
लेखकों के
कहानी संग्रहों
में स्वर्गीय
हरचरण चावला
का कहानी
संग्रह 'आख़िरी
कदम से
पहले' ( सन
१९८३ को
नेशनल पब्लिशिंग
हाउस, दिल्ली
से प्रकाशित)
और सुरेशचंद्र
शुक्ल का
कहानी संग्रह
'अर्द्धरात्रि का सूरज' (सन १९९६
को हिन्दी
प्रचारक पब्लिकेशन्स,
वाराणसी द्वारा
प्रकाशित और
राष्ट्रपति शकर दयाल शर्मा द्वारा
प्रशंसित) को खास बताया तथा
यात्रा वृत्तान्त
में सन
१९७३ को
वन्दे मातरम्
प्रेस लखनऊ
से छपी
डॉ राजेंद्र
प्रसाद शुक्ल
की पुस्तक
'मेरी साइकिल
यात्रा' को
यात्रा साहित्य
में विशिष्ट
बताया।
नार्वे के लेखकों
की खास
पुस्तकों जो
हिन्दी साहित्य
में चर्चित
रहीं वे
हैं स्वर्गीय
पूर्णिमा चावला
की पुस्तक
'कभी-कभी
लगता है'
और सुरेश
चन्द्र शुक्ल
की काव्य
पुस्तकों 'रजनी' (१९८४ संगीता प्रकाशन,
लखनऊ), नंगे
पांवों का
सुख' (१९८६
संगीता प्रकाशन,
लखनऊ), 'नीड़
में फंसे
पंख' ( १९९९
को हिन्दी
प्रचारक पब्लिकेशन्स,
वाराणसी जिसका
लोकार्पण लन्दन
में हुए
विश्व हिन्दी
सम्मलेन में
माननीय विजय
राजे सिंधिया
द्वारा हुआ
था),और
'गंगा से
ग्लोमा तक'
(२०१० को
'विश्व पुस्तक
प्रकाशन, नयी
दिल्ली से
प्रकाशित)।
संगीता शुक्ल
सीमोन्सेन की हिन्दी की पाठ्य
पुस्तक भी
सराहनीय है
जो हिन्दी
स्कूल नार्वे
में पढ़ाई
जाती है।
ओस्लो विश्व
विद्यालय के
प्रो. जोलर
द्वारा हिन्दी
का डाटा
बेस भी
एक उत्कृष्ट
कार्य है।
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