बड़े जतन से जुटाया हुआ फोटो (डॉ. अर्जुब देव चारण ) |
मैं उन्हें बहुत सालों से जानता हूँ हालांकि उनकी रचना तो मैं फोरी तौर पर ही पढ़ा पाया हूँ.मगर उनसे हुई दो-तीन बड़ी मुलाकातें बड़ी ज्ञानवर्धक और जानाकारीभरी रही. स्पिक मैके आन्दोलन में मेरे राज्यस्तरीय दायित्व के चलते उनसे बहुतों बार बातचीत हुई.उदयपुर में एक राजस्थानी नाट्यकर्मियों की सेमिनार में भी उनसे वाकिफ हुआ.एक बार ऐसा भी हुआ की वे चित्तौड़ में इसे आन्दोलन के एक राज्य स्तरीय सम्मलेन में आए.मैं अवाक रहा गया उनके ज्ञान को देख सुनकर,जब उन्होंने फड़ वाचन के आयोजन को पूरी तरह से सूत्रधार की भूमिका में पूरा किया.
उनके नाट्य समूह में सतत काम करने वाली कत्थक नर्तकी महुआ देव से भी उनके व्यक्तित्व को लेकर बहुत बार बातें हुई.वे बताते है की जब हाल ही साल दो हज़ार ग्यारह में उन्हें राजस्थान संगीत नाटक अकादेमी का अध्यक्ष बनाया गया तो उन्होंने महुआ को एक बड़ी विज्ञप्ति तक नहीं जारी करने दी. अभी हुई ताज़ा बातचीत में वे फिर बता रही थी कि अर्जुन देव जी ने अभी तक अपने साहित्य के ओनालाईनीकरण को गलत ही माना है.उनकी मंशा कुछ भी रही हो मगर इस युग में उन्हें कोइ पाठक पढ़ना चाहता हो.मगर उसके लिए किताबें खरीदना समभव नहीं हो तो उस पाठक का इसमें क्या दोष है. सारा दोष डॉ. अर्जुन देव का ही होगा.जिसके चलते वे उन तक नहीं पहुँच पाते हैं.ये रपट फिलहाल आपके लिए.
माणिक
Comments