रंगमंच गुरु स्व.
पं. सत्यदेव
दुबे की
स्मृति में
पटना के
हिंसा के
विरुद्ध संस्कृतिकर्मी
(साझा मंच)
द्वारा प्रेमचंद
रंगशाला में
आयोजित शोक
सभा में
मैं अपना
विचार रखते
हुये .रंगमंच
गुरु पं
सत्यदेव दुबे
का निधन
२५ दिसम्बर
११ को
हो गया
. उनका जन्म
सन १९३६
में बिलासपुर
,मध्य प्रदेश
में हुआ
था ,दूबे
जी का
ताल्लुक़ात मुख्यतः नाटकों से था
. उन्होंने कई हिन्दी फिल्मों में
भी अपना
उपस्थिति दर्ज
रखा. उन्हें
१...९७१
में संगीत
नाटक अकादमी
पुरस्कार ,१९७८ में श्याम बेनेगल
की फिल्म
"भूमिका" में सर्वश्रेठ
पटकथा के
लिये राष्ट्रीय
फिल्म पुरस्कार
,१९८० में
फिल्म "जूनून" के लिये सर्वश्रेठ
फिल्म फेयर
डयलोग पुरस्कार
एवं २०११
में भारत
सरकार के
सम्मानित पुरस्कार
"पदम भूषण" का भी गौरव
प्राप्त था.
स्व. दूबे जी
उन विलक्षण
नाटककारों में थे ,जिन्होंने भारतीय
रंगमंच को
एक नई
दिशा दी
.वे देश में
हिन्दी के
अकेले नाटककार
थे ,जिन्होंने
अलग अलग
भाषाओँ के
नाटकों में
हिन्दी में
लाकर उसे
अमर कर
दिया .धर्मवीर
भारती के
नाटक 'अँधा
युग 'को
सबसे पहले
सत्यदेव दूबेने
ही लोकप्रियता
दिलाई ,इसके
अलावा गिरीश
कर्नाड के
आरंभिक नाटक
'ययाति' और
'हयबदन',बादल
सरकार के
'इन्द्रजीत' और 'पगला घोडा' , मोहन
राकेश के
'आधे अधूरे'
और विजय
तेंदुलकर के
'खामोश आदालत
जारी है'
,जैसे नाटकों
को भी
सत्यदेव दूबे
के कारण
ही पुरे
देश में
अलग पहचान
मिली. दूबे
जी फिल्मों
में भी
ख़ुब संवाद
एवं पटकथा
लेखन किया
,जिनमें - अंकुर ,निशांत ,भूमिका ,जुजून,
कलयुग , आक्रोश
,विजेता ,मंडी
जैसी फ़िल्में
रही .
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