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युवा उपन्यासकार अशोक जमनानी के मेरे बारें विचार

मेरे मित्र माणिक ने मुझसे आग्रह किया है कि साहित्य अकादमी म.प्र. के दुष्यंत कुमार सम्मान मिलने पर अपने कुछ अनुभव मैं सबके साथ बांटू। उनके किसी भी आग्रह को नकारात्मक उत्तर देना मेरे लिए कभी संभव नहीं होगा हां! इतनी छूट मुझे अवश्य हासिल है कि अपनी चिर-परिचित आलसी छवि का पूरा फायदा मैं उठाता रहूं। तो चलिए देर से ही सही लेकिन एक अनुभव तो आप तक पहुंचा  ही दूं. शायद माणिक मेरी आलसी छवि के बारे में अपनी राय बदल दे 

 हमारे देश की बहुरंगी संस्कृति के रंगों की बात हो और  रंगों का रिश्ता भी राजस्थान से हो तो न जाने कितने चटकीले रंग शौर्य और सौंदर्य की गाथाएं सुनाने के लिए सामने आकर खड़े हो जाते हैं। रंगों के इसी शौर्य और सौंदर्य को फड़ चित्रकला के माध्यम से व्यक्त करते हैं राजस्थान के श्री सत्य नारायण जोशी जो कि न जाने कितनी पीढ़ियों से इस कला के सौंदर्य को सहजते चले आ रहे हैं। उनसे मेरा परिचय भी माणिक ने ही करवाया। उनकी कला और उनके बारे में फिर कभी विस्तार से लिखूंगा अभी तो बात करनी है.उनके भेजे उपहार की। सम्मान मिलने पर बहुत सी बधाइयों के साथ-साथ कुछ उपहार भी मिले जो मेरे अपनों ने मुझे बहुत प्यार और आशीर्वाद के साथ दिए। ऐसा ही एक उपहार जोशी जी ने भी भेजा। उनकी इस बहुत खूबसूरत पेंटिंग को देखकर पहला विचार यही आया कि यह रंगों का आशीर्वाद है शब्दों  के लिए। मैं उनके स्नेह के बदले में क्या देता? बस एक छोटी सी कविता लिखी है वही पेश  कर रहा हूँ. शायद ये कविता मेरा विनम्र आभार बन सके .............. 
         तन्मात्र प्रथम 
         करता जब अवरोह 
         सृष्टि के लिए......... 
         रचता 
         न जाने कितने रंग 
         महा-प्रलय में 
         करता आरोह 
         विलीन होता शब्द में 
         पुनः प्राकट्य से पूर्व
         समस्त सृष्टि रंग 
         नहीं खोता समस्त रंग 
         अनश्वरता  का अमर्त्य लेकर 
         सृष्टि महालय के मध्य 
        शब्द 
         नकार कर नश्वरता 
         लिखते हैं अमरता 
         रंग 
         नकार कर नश्वरता 
         रचते हैं अमरता 
                  :-अशोक जमनानी     

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