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’बुद्धिनाथ मिश्र की रचनाधर्मिता’ पुस्तक का भव्य लोकार्पण


 ‘बुद्धिनाथ मिश्र की रचनाधर्मिता’ पुस्तक का लोकार्पण करते
कुलपति प्रो 
पृथ्वीश नाग (मध्य में), डॉ. अनुराधा बनर्जी धर्मेन्द्र सिंह। 
साथ में डॉ बुद्धिनाथ मिश्र एवं डॉ अवनीश सिंह चौहान 

वाराणसी: 2 दिसंबर : महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के पत्रकारिता संस्थान सभागार में प्रसिद्ध नवगीतकार डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र पर केन्द्रित पुस्तक ‘बुद्धिनाथ मिश्र की रचनाधर्मिता’ का लोकार्पण कुलपति डॉ. पृथ्वीश नाग एवं डॉ. अनुराधा बनर्जी ने किया। 

कार्यक्रम का शुभारम्भ मां वागेश्वरी के समक्ष डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र ने 'अपनी चिट्ठी बूढ़ी मां मुझसे लिखवाती है / जो भी मैं लिखता हूं / वह कविता बन जाती है’ गीत पढ़कर की। तत्पश्चात इस पुस्तक के सम्पादक डॉ. अवनीश सिंह चौहान ने बुद्धिनाथ मिश्र की रचनाधर्मिता पुस्तक का विस्तार से परिचय देते हुए कहा कि डॉ मिश्र की भारतीय जीवन के विविध सरोकारों के प्रति सजगता एवं संवेदनशीलता जहां 'वसुधैव कुटुम्बकम' की भावना को उद्घाटित करती है वहीं सहृदयों को इस आयाम पर चिन्तन करने की प्रेरणा भी प्रदान करती है।मिश्रजी न केवल हिन्दी के बल्कि मैथलीय साहित्य के अद्वितीय हस्ताक्षर हैं। उनकी भाषा में शक्ति है सम्प्रेषणीयता है और है शब्द सामंजस्य।

लोकार्पित पुस्तक के कुशल सम्पादन हेतु डॉ. अवनीश चौहान को बधाई देते हुए कुलपति प्रो. नाग ने कहा कि डॉ. बुद्धिनाथ की कविताओं की हिन्दी सरल है जिसे आमजन भी उनकी कविता का मर्म समझ लेता है। इनकी कविता में पर्यावरण का असर दिखता है जिसको ध्यान में रखकर कविता लिखने वाले कवियों की संख्या बहुत कम है।

बीएचयू के प्रो वशिष्ठ अनूप ने कहा कि डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र पर केन्द्रित पुस्तक न केवल डॉ. मिश्र के जीवनानुभवों से परिचय कराती है बल्कि नवगीत की वर्तमान धारा से भी जोड़ने का सार्थक प्रयास करती है।डॉ. नीरजा माधव ने कहा कि डॉ. बुद्धिनाथ की कविताओं में भावना व संवेदना दोनों का सामंजस्य दिखाई पड़ता है। महत्वपूर्ण यह भी है कि एक युवा सम्पादक डॉ. चौहान ने जाने-माने गीतकवि डॉ मिश्र की भावना एवं संवेदना की पड़ताल इस पुस्तक के माध्यम से प्रस्तुत की है। उत्तराखंड के वाचस्पति जी ने कहा कि डॉ. बुद्धिनाथ ने बिना कोई समौझता किये ही अपनी रचनाओं में सुन्दर शब्दों का चयन किया है। उनको बेहतर ढंग से जानने-समझने के लिए यह पुस्तक बहुत उपयोगी होगी। हरीश जी ने कहा कि कवि का राज्य नहीं समाज के प्रति उत्तरदायित्व होता है। सुप्रसिद्ध भोजपुरी गीतकार श्री हरिराम द्विवेदी ने कहा कि डॉ. बुद्धिनाथ कविता लिखते नहीं लिख जाती हैं जैसा उनका स्वभाव है उसका असर कविताओं पर दिखता है। उन पर केंद्रित यह पुस्तक पाठकों को एक नया नजरिया देगी। हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो सुरेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि भारत में काव्य की लम्बी परम्परा रही है वर्तमान समय नवगीत की पारी खत्म होती दिख रही है ऐसे में काशी को केन्द्र बनाकर नवगीत की नयी पारी की शुरूआत करनी चाहिए। इस सन्दर्भ में लोकार्पित पुस्तक एक पहल के रूप में देखी जा सकती है। 

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वसंत कन्या महाविद्यालय कमच्छा के अंग्रेजी विभाग की अध्यक्ष डॉ. अनुराधा बनर्जी ने कहा कि अनुशासन के मूल में भाषा व चिंतन होता है । बिम्ब किस अनुशासन से बना है यह कविता पढ़ने के बाद पता चलता है। बुद्धिनाथ मिश्र की कविताई और उनकी वैचारिकी को उनके व्यक्तित्व के साथ समग्र रूप से जानने के लिए यह पुस्तक बहुत महत्वपूर्ण है। इस सराहनीय कार्य के लिए संपादक और कवि दोनों बधाई के पात्र हैं।

इस अवसर पर डॉ बुद्धिनाथ मिश्र ने अपने प्रमुख गीतों का पाठ भी किया। डॉ मिश्र ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए पुस्तक के सम्पादक डॉ अवनीश सिंह चौहान एवं प्रकाशक राहुल जी (प्रकाश बुक डिपो, बरेली, उ प्र) को धन्यवाद दिया। कार्यक्रम में प्रो. मंजुला चतुर्वेदी, विकास पाठक, डॉ दयानिधि, हरी भैया, डॉ. सुरेन्द्र सिंह, विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राएं एवं प्राध्यापकगण, शहर के सम्भ्रान्त नागरिक और प्रतिष्ठित साहित्यकार आदि मौजूद रहे। संचालन वरिष्ठ पत्रकार एवं समाजसेवी धर्मेन्द्र सिंह व धन्यवाद ज्ञापन प्रो श्रद्धानंद ने किया।

अवनीश सिंह चौहान 

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