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14 अप्रैल को बाबा भीमराव अम्बेडकर की 123वीं जंयती पर


                      
बाबा भीमराव अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 में महाउ आर्मी केटोटंमेंट  में एक महार परिवार में हुआ था। उनके पिताजी भीमाभाई सकपाल भारतीय सेना में सूबेदार के पद पर तैनात थे। सेवानिवृत होने के बाद अम्बेडकर परिवार महाराष्ट्र के सतारा जिले में आ कर बस गए। जहां अपने अथक मेहनत और सहानुभू़तिशील लोगों के सहयोग से बाबा भीमराव अम्बेडकर ने उच्च शिक्षा प्राप्त की जब कि उनके जैसे एक व्यक्ति जो कि उस ज़माने में अछूत समझे जाते थे के लिए यह शिक्षा प्राप्त करना लगभग असंभव था। सामाजिक तौर पर विद्यालय में उन्हें काफी भेदभाव सहन करना पड़ा। उस समय ब्राहमणवाद चरम सीमा पर था व किसी भी अछूत को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार नहीं था।  उनकी उच्च शिक्षा को प्राप्त करने में महाराजा बड़ौदा का बहुत बड़ा योगदान था। अपने कठोर आत्मविश्वास के साथ उन्होंने वंचित समाज की आवाज़ को लेकर राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश किया। 

हमारे राष्ट्रीय आंदोलन में उनका योगदान बहुत महत्वपूर्ण रहा जिसमें उन्होंने देश को एक क्रांतिकारी परिवर्तन दिशा की ओर ले जाने के लिए अथक प्रयास किया। राष्ट्रीय आज़ादी के आंदोलन में हर तरह की सामाजिक भेदभाव को समाप्त करने के महत्वपूर्ण मुददे को उन्होंने स्थापित किया व सम्पूर्ण आज़ादी और राष्ट्रीय मुक्ति की अवधारणा को नए रूप से परिभाषित भी किया। उन्नीसवीं सदी में महात्मा ज्योतिबा फूले और सावित्री बाई फूले ने अछूत समाज की शिक्षा के लिए क्रांतिकारी आंदोलन की शुरूआत की थी, उनसे प्रणेना लेते हुए बीसवीं सदी में बाबा भीमराव अम्बेडकर ने उसके राजनैतिक स्वरूप को देश की जनता के सामने रखा व एक तरह से राष्ट्रीय आज़ादी के आंदोलन में एक नई धारा को भी लाए। राष्ट्र निर्माण के साथ सामजिक समानता का सवाल आज एक अभिन्न अंग है जो कि उनके द्वारा राष्ट्रीय आंदोलन में उनकी सबसे बड़ी योगदान है। स्मरण रहे कि बाबा भीमराव अम्बेडकर की राजनैतिक सामाजिक आंदोलन में अविरभाव से ठीक पहले शहीद-ए-आज़म भगतसिंह ने राष्ट्रीय आज़ादी के कार्यक्रम में सामाजिक समानता को लाने के लिए जातिवादी परम्परा को खत्म करने का आवहान किया था। 

इसके लिए उन्होंने अछूत समाज को संगठित करने की जरूरत पर ज़ोर दिया था। बाबा साहब ने उन्हीं क्रांतिकारी भावनाओं को एक व्यवहारिक शक्ल दी और ये नारे दिए थे ‘शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करोे’। शिक्षा, संगठन और संघर्ष का यह अभूतपूर्व आयाम भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के लिए एक महत्वपूर्ण आधारशिला है जिसके साथ उन्होंने ‘जो जमींन सरकारी है वो ज़मीन हमारी है’ का भी नारा दिया जो आज भी राष्ट्रीय निर्माण में यह सबसे अहम मुददा है। कोई भी प्रगतिशील आंदोलन इस आयाम से बाहर नहीं हो सकता है। इसलिए डा0 अम्बेडकर के विचार आज भी उतने ही शाश्वत और क्रांतिकारी है जोकि अंग्रेजी शासनकाल में थे, चूंकि हमें राजनैतिक आज़ादी तो मिली है लेकिन सामाजिक आर्थिक बराबरी नहीं मिली है। उनका मिशन अभी भी अधूरा है जिसको पूरा करने की जिम्मेदारी आज की पीढ़ी की है।

बाबा भीमराव अम्बेडकर ने जो सामाजिक क्रांति की विचार रखे थे वे सभी शोषित और पिछड़े वर्गो के लिए थे न कि केवल एक जाति के लिए, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि हमारे शासक वर्ग और राजनैतिक नेतृत्व ने उनको जाति विशेष के साथ जोड़ने की साजिश की ताकि उनके विचारों को जातिगत दायरे में ही बांध कर रखा जा सके। उन्हें ये डर है कि अगर बाबा साहब के विचार पूरे समाज में फैलेगें तो अंतोगतवा सामाजिक बराबरी के आंदोलन व्यवस्था परिवर्तन के आंदोलन तक पहुंच जाएगी। इसलिए उनके परिनिर्वाण के बाद उनके विचारों को व्यापक समाज में जाने से रोकने के लिए तरह तरह के योजनागत तरीके से कोशिश की गई। और काफी समय तक इसमें वो कामयाब भी हुए। लेकिन 70 के दशक के बाद और खासकर के 80 के दशक के बाद उनकी रचनाओं का व्याप्क प्रचार फिर से शुरू हुआ। और वो व्यापक समाज तक फैला। फिर भी प्रक्रियावादीयों द्वारा आज भी बाबा साहब को जातिगत सोच के दायरे में रखने की कोशिश ज़ारी है। 

कुछ अपवाद छोड़ कर केन्द्रीय राज्य सरकारें उनके जन्मदिवस को रसम अदायगी की तरह मनाते हैं इसलिए हर प्रगतिशील मेहनतकश तबके व वंचित सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ताओं की की यह जिम्मेदारी है कि उनके विचारों को सही रूप से अध्ययन करें व व्यापक रूप से प्रसारित करे। ताकि इन महापुरूषों का चिंतन और विचार एक राष्ट्रीय शक्ति के रूप से उभर कर सामने आए। आज जब हमारे शासक वर्ग और तमाम पूंजीवादी सांमतशाही शक्तियां देश के प्राकृतिक संसाधनों को लूट कर उसे बेचने पर अमादा है ऐसे समय में बाबा साहब के विचार एक प्रभावशाली विचार के रूप में वाम जनांदोलनों को एक क्रांतिकारी दिशा दे सकते हैं। इसलिए आज अपनी जीविका के लिए निर्भरशील मेहनतकश तबके के लिए अपनी जल, जंगल और जमंीन को बचाने का आंदोलन भी सामाजिक समानता का ही आंदोलन है। इसलिए उनके जन्मदिवस के समारोह की तरह न देखकर उनके विचारों को ध्यानपूवर्क समझने की कोशिश होनी चाहिए। इतिहास गवाह है कि सच्चे महापुरूष विचारों में जिंदा रहते हैं नकि तस्वीर और मूर्तियों में। 

हमारा संगठन रा0 वनजन श्रमजीवी मंच बाबा साहब जैसे महापुरूषों के प्रति समर्पित है और उन्हीं विचार शक्ति के आधार पर अपने कार्यक्रमों को और मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध है। तमाम वंचित समाजों को शिक्षित करना उन्हें संगठित करना और उन्हें निर्णायक संघर्ष की ओर प्रेरित करना हमारा मुख्य ध्येय है। इसलिए हमारे संगठन का भी मुख्य नारा है ‘ वनसम्पदा हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’ व ‘जो जमींन सरकारी है वो जमंीन हमारी है’। हमारे संगठन द्वारा बाबा भीमराव अम्बेडकर को यहीं हमारी सच्ची श्रद्धांजलि है। 

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