- पुस्तक श्रृंखला 'मेरी प्रिय कथाएं' का लोकार्पण
नई दिल्ली
राजेन्द्र जी यादव |
हंस
के सम्पादक
और विख्यात
कथाकार राजेन्द्र
यादव ने
कहा है
कि पारंपरिक
तरीकों से
पाठकों तक
जाना अब
पर्याप्त नहीं
इसके लिए
हिन्दी प्रकाशकों
को
नए तरीके खोजने होंगे. वे
ज्योतिपर्व प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक
श्रृंखला 'मेरी प्रिय कथाएं' का
लोकार्पण कर
रहे थे.
हिन्दी भवन
में आयोजित
इस लोकार्पण
समारोह में
उन्होंने इस
पुस्तक श्रृंखला
को भी
महत्त्वपूर्ण बताते हुए कहा कि
स्थापित लेखकों
की ऐसी
पुस्तकें आना
तो उचित
ही है
लेकिन असल
चुनौती यह
है कि
नए लेखकों
के लिए
भी ऐसी
कोई श्रृंखला
हो. उन्होंने
लेखन की
चुनौतियों का ज़िक्र करते हुए
कहा कि
लेखक लिख
लेने के
बाद पाठक
और उससे
भी अधिक
आलोचक से
मान्यता चाहता
है. यहीं
वे लेखक
डगमगा जाते
हैं जो
आलोचकों की
चिंता करते
हैं,यदि
वे पाठकों
की चिंता
करेंगे तो
अपना सर्वश्रेष्ठ
दे सकेंगे.
किसी दबाव
के बिना
लिखने पर
ही भीतर
का श्रेष्ठ
आ सकता
है. इससे
पहले मंच
पर राजेन्द्र
यादव के
साथ उपस्थित
मुख्य अतिथि
बी एल
गौड़, विशेष
अथिति डॉ.
राजेंद्र अग्रवाल,
आलोचक-कथाकार
अर्चना वर्मा,
कथाकार संजीव
सहित अन्य
अथितियों ने
इस श्रृंखला
के पहले
सेट का
लोकार्पण किया.
इस सेट
में विख्यात
कथाकार संजीव,
स्वयं प्रकाश,
सुधा अरोड़ा,
हबीब कैफ़ी,
विजय और
अशोक गुप्ता
की पुस्तकें
हैं. इन
पुस्तकों में
अपनी प्रिय
कथाओं का
चुनाव स्वयं
लेखक ने
किया है
अत; इनका
आकर्षण पाठकों
में कहीं
अधिक है.
लोकार्पण समारोह में
पुस्तकों पर
हुई चर्चा
में सबसे
पहले युवा
आलोचक संजीव
कुमार ने
कथाकार संजीव
और हबीब
कैफ़ी की
कहानियों पर
टिप्पणी की.
उन्होंने कहा
कि संजीव
की कहानी
'अपराध' बहुत
चर्चित है
लेकिन लगभग
तीस सालों
के बाद
भी इसमें
जबरदस्त पठनीयता
का कारण
विषय की
गंभीरता और
प्रस्तुतिकरण ही है. हबीब कैफ़ी
की कहानियों
को भी
उन्होंने उल्लेखनीय
बताते हुए
कहा कि
उनकी चर्चा
कम ही
हुई है
तथापि उनकी
कहानियां प्रभावशाली
ढंग से
अपनी बात
कहने में
सक्षम हैं.
युवा आलोचक और 'बनास जन' के संपादक पल्लव |
युवा आलोचक
और 'बनास
जन' के
संपादक पल्लव
ने स्वयं
प्रकाश की
कहानियों पर
टिप्पणी करते
हुए कहा
कि उनकी
ये कहानियाँ
सचमुच कथाएं
ही हैं
जिनमें लेखक
उत्तर आधुनिक
परिदृश्य में
अपनी कहन
के लिए
नितांत देशज
मुहावरा और
शैली तलाश
करता है. उन्होंने
पुस्तक की
कुछ कहानियों
से खास
अंशों का
पाठ करते
हुए बाते
कि किस
तरह ये
कहानियाँ पाठकों
को महज़
उपभोक्ता हो
जाने का
प्रत्याख्यान रचतीं हैं. उन्होंने हबीब
कैफ़ी की
कहानियों की
चर्चा में
कहा कि
राजस्थान के
जीवन और
मुस्लिम परिवेश
के कई
दुर्भ चित्र
उनकी कहानियों
में आये
हैं.
कथाकार समीक्षक विपिन कुमार शर्मा
ने श्रृंखला
के कथाकारों
के कृतित्त्व
में से
किये गए
इस चुनाव
की प्रासंगिकता
दर्शाने वाली
कहानियों की
चर्चा की.
युवा कथाकार विवेक
मिश्र ने
चर्चा में
सुधा अरोड़ा
और विजय
के कहानी
लेखन पर
प्रकाश डाला.
कथा चर्चा
में
मुख्य अतिथि बी
एल गौड़
और विशेष
अथिति डॉ.
राजेंद्र अग्रवाल
ने
भी अपने विचार व्यक्त किये.आलोचक-कथाकार अर्चना
वर्मा ने
कहा कि
लेखक के
निकट रहने
वाली इन
कहानियों को
चुनना अपने
ढंग से
सार्थक है.
लेखकीय वक्तव्य
में कथाकार
संजीव ने
कहा कि
मुझे जितना
बोलना था
वह कहानी
में ही
बोल चुका.
उन्होंने भारतीय
वांग्मय की
समृद्धता के
समक्ष ऐसी
पुस्तकों के
बार बार
प्रकाशन की
उपयोगिता बताई.
कथाकार विजय
और अशोक
गुप्ता ने
भी संक्षिप्त
लेखकीय वक्तव्य
दिए.
अंत में ज्योतिपर्व
प्रकाशन की
ओर से
ज्योति राय
ने सभी
का आभार
माना. संयोजन
कर रहे
कवि-ब्लागर
अरुण राय
ने ज्योतिपर्व
प्रकाशन की
इस पुस्तक
श्रृंखला की
जानकारी दी
और बताया
कि शीघ्र
ही इस
श्रृंखला में
पाठक ओम
प्रकाश वाल्मीकि.
पानू खोलिया,
असगर वजाहत,
चरण सिंह
पथिक सहित
अनेक महत्त्वपूर्ण
कथाकारों की
पुस्तकें पढ़
सकेंगे. आयोजन
में कथाकार
सुभाष नीरव,
कथाकार अजय
नावरिया, आलोचक
संजीव ठाकुर,
राजकमल, वन्दना
ग्रोवर, रश्मि,
सतीश सक्सेना,
मनोज कुमार,
राधा रमण
सहित बड़ी
संख्या में
पाठक-पत्रकार
उपस्थित थे.
प्रस्तुति-
अरुण चन्द्र राय
(पेशे से कॉपीरायटर तथा विज्ञापन व ब्रांड सलाहकार. दिल्ली और एन सी आर की कई विज्ञापन एजेंसियों के लिए और कई नामी गिरामी ब्रांडो के साथ काम करने के बाद स्वयं की विज्ञापन एजेंसी तथा डिजाईन स्टूडियो का सञ्चालन. अपने देश, समाज, अपने लोगों से सरोकार को बनाये रखने के लिए कविता को माध्यम बनाया है)
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