नई दिल्ली
"नयी कविता की
ये खासियत
है कि
जितनी ये
एक कवि
की होती
है, उतनी
ही अपनी
भी होती
है!" ......ये पंक्तियाँ वरिष्ठ कवि
अजित कुमार
ने अपने
अध्यक्षीय व्यक्तव्य में कही! अवसर था
अकादेमी ऑफ़
फाईन आर्ट्स
एंड लिटरेचर
के साहित्यिक
कविता पाठ
के कार्यक्रम
'डायलाग' का
आयोजन!
हर बार की तरह माह
के आखिरी
शनिवार यानि
३० जून
को इस
कार्यक्रम का आयोजन अकादमी के
म्यूसियम हॉल
में किया
गया!
कार्यक्रम के अध्यक्ष
थे वरिष्ठ
कवि अजित
कुमार और
सञ्चालन कर
रहे थे
इसके मुख्य
संयोजक एवं
सुप्रसिद्ध कवि मिथिलेश श्रीवास्तव!
इस बहुभाषीय कार्यक्रम में हिंदी
के जिन
छ कवियों
ने काव्य
पाठ किया
उनके नाम
हैं - उमेश
चौहान, दुर्गा
प्रसाद गुप्त,
मनोज सिंह,
प्रमोद सिंह,
अरुणाकर पाण्डेय
और शम्भू
यादव!
इसमें अभय के. ने अपनी
कुछ अंग्रेजी
की कविताओं
का भी
पाठ किया! मुख्यतः
पर्यावरण और
ग्रहों पर
आधारित उनकी
कवितायेँ काफी
पसंद की
गयी!
प्रशासनिक सेवा से
जुड़े और
प्रबुद्ध बहुभाषीय
कवि उमेश
चौहान ने
अपनी एक
प्रसिद्द लम्बी
कविता 'चक
दे करमजीते'
सुना कर
कार्यक्रम में आये सभी श्रोताओं
की वाहवाही
बटोरी!
अप्रवासी भारतीय पति द्वारा धोखा
खायी एक
स्त्री के
संघर्ष और
उन पर
विजय पाने
की ये
कहानी जितनी
मार्मिक थी
उतनी ही
प्रेरणादायी भी थी! वहीँ उन्होंने
अपनी सुपरिचित
शैली में
अवधी में
जोशीला 'आल्हा'
गाकर सबका
दिल जीत
लिया! उल्लेखनीय
है कि
उनका काव्यपाठ
बहुत प्रभावशाली
होता है! जामिया
मिलिया इस्लामिया
विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर
एवं कवि
दुर्गा प्रसाद
गुप्त ने
अपनी करीब
छह-सात
कविताओं का
पाठ किया
इनमें कुछ
थी, निर्जन
में संगीत,
स्मृति, उदासी
का गीत,
घर का
कोना, दूसरा
घर, शब्बा
खैर!
इनमें से कुछ कवितायेँ उनके
काव्य संग्रह
'जहाँ धूप
आकार लेती
है' से
थी!
मानवीय संवेदनाओं को टटोलती ये
कवितायेँ लगभग
सभी विषयों
को कवर
करती थी
जिनमें कवि
की बारीक
नज़र घर
और समाज
दोनों पर
बराबर रही!
देशबंधु कॉलेज में
हिंदी के
प्रोफेसर मनोज
सिंह ने
अपनी कुछ
प्रकृति से
जुडी रचनाओं
को रोचक
ढंग से
प्रस्तुत किया
जिनके नाम
थे 'सावन'
और 'आषाढ़'! इसके बाद उन्होंने
मार्मिक कविता
'माँ की
तस्वीर ढूंढते
हुए' और
एक अन्य
कविता 'दुःख
की नदी'
सभी से
साझा की! 'माँ'
कविता ने
एक स्त्री
की जीवनयात्रा,
उसकी सार्थकता
और उसके
जीवनकाल में
उसके महत्त्व
को न
समझने जैसे
कई पक्षों
को सशक्त
रूप से
सामने ला
कर खड़ा
कर दिया! ये कविता सभी
के दिल
को छु
गयी!
दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और
कवि प्रमोद
सिंह ने
भी अपनी
कुछ लघु
कवितायेँ सभी
को सुनाई! अमूमन
उनकी कविताओं
के शीर्षक
नहीं होते
हैं किन्तु
चलन को
देखते हुए
उन्होंने फौरी
तौर पर
उनके कुछ
शीर्षक भी
सुझाये!
ये थी, शाम ढल रही
थी, आज
फिर, आँखों
के सपने,
वह चला
गया, शहर,
जहाँ हूँ
वहां नहीं
रहना चाहता,
सुबह से
शाम तलक! ये सभी कवितायेँ
कथ्य और
शिल्प के
स्तर पर
खरी कवितायेँ
थी जो
समाज और
जीवनानुभवों से जुड़े सच को
रेखांकित करती
प्रतीत हुई!
पत्रकारिता से जुड़े
युवा कवि
अरुणाकर पाण्डेय
ने अपनी
पांच लम्बी
कविताओं का
पाठ किया
जिनके शीर्षक
थे - बाघा
बोर्डर से
पहली बार,
जलियांवाला बाग की एक सैर,
चार बजे
के बाद
की विफलता,
गति और
कविता में
ब्लैकहोल! मैं बताना चाहूंगी
कि युवा
कवि ने
सभी को
खासा प्रभावित
किया!
आज की युवा पीढ़ी आज
के दौर
की सभी
चिंताओं, उपलब्धियों
और विसंगतियों
पर अपनी
दृष्टि संभव
से रखते
हुए, अपनी
तमाम सांस्कृतिक
और सामाजिक
धरोहरों को
सहेजते हुए
कैसे आगे
बढ़ना चाहती
है ये
कवितायेँ इस
बात की
तस्दीक बराबर
करती रही! पूर्व
में व्यवसाय
से जुड़े
और अब
पूर्णकालिक कवि शम्भू यादव ने
अपनी सात
कवितायेँ सभी
से साझा
की!
उनके नाम थे - लेडिज फिंगर,
कविता की
मौत, गृहस्थी
मैं और
तुम, मोहल्ले
में रहते
हुए लोग,
रामदीन, मंडेला,
माफ़ करना
कामरेड!
इन सभी कविताओं में जहाँ
आधुनिकता के
नाम पर
बच्चे पर
भाषा सीखने
का दबाव
था तो
सामाजिक विसंगतियां
भी थी,
साथ एक
स्त्री की
पीड़ा भी
मार्मिक ढंग
से चित्रित
की गयी
थी!
वहीँ कुछ कविताओं में निहित
व्यंजना बहुत
पसंद की
गयी!
अध्यक्ष अजित कुमार
जी ने
इस कार्यक्रम
में सुनाई
कविताओं पर
संतोष और
प्रसन्नता जाहिर करते हुए इसे
एक बेहद
जरूरी आयोजन
का नाम
दिया!
साथ ही ये इच्छा जाहिर
की आगे
भी एक
श्रोता के
तौर पर
वे इस
कार्यक्रम में कवितायेँ सुनने के
लिए आना
चाहेंगे! उन्होंने
कुछ कवितायेँ
भी सुनाई
जो सभी
को बेहद
पसंद आई,
उन्होंने अपनी
भी एक
कविता का
पाठ किया,
साथ ही
युवा कवियों
को प्रोत्साहित
करते हुए
कविता की
संतोषजनक प्रगति
पर अपनी
राय जाहिर
की! हर
बार की
तरह बेहद
गर्मी और
तेज धूप
होने के
बावजूद काफी
लोगों ने
इस कार्यक्रम
में उपस्थिति
दर्ज करवाई! सभी के नाम
दे पाना
संभव नहीं
है, उनमें
से कुछ
थे, अकादमी
से जुडी
अजित कौर,
प्रेमचंद सहजवाला,
नूर ज़ाहिर,
रूपा सिंह,
राजीव तनेजा,
राघव विवेक
पंडित, नोरिन
शर्मा, आनंद
द्विवेदी, जीतेन्द्र कुमार पाण्डेय, मृदुला
हर्षवर्धन, अकबर रिज़वी, बलि सिंह,
ओमलता शाक्य
और अन्य
कई मित्र
वहां उपस्थित
रहे!
अंजू शर्मा के धन्यवाद ज्ञापन
के साथ
खूबसूरत कविताओं
से सराबोर
ये शाम
अपने समापन
की ओर
बढ़ चली,
इस उम्मीद
के साथ
कि ये
कई दिन
लोगो की
स्मृतियों में बरक़रार रहेगी!
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