चर्चित कवि -आलोचक
विजय कुमार
की इस
कृति से
गुजरना विश्व-
कविता के
अनेक शीर्ष
कवियों के
संसार को
जानना और
समझना है
. विजय कुमार
की संवेदना
–दृष्टि का
दायरा विस्तृत
है और
वह प्रखर
वैचारिकता और गहन रसज्ञता से
युक्त रहा
है. उन्होंने
पिछले दो
दशकों में
बीसवीं सदी
के संसार
में विभिन्न
भाषाओं के
सर्वाधिक चर्चित
कवियों के
रचना – संसार
में गहरे
डूब कर
कुछ अनूठे
निबंध लिखे
हैं . इनमें
एक गहरा
सरोकार है
जिसकी हिन्दी
संसार में
सर्वत्र सराहना
हुई है
. ये निबंध
विश्व – कवियों
के बहाने
हमारे समय
में सृजन
–कर्म की
मूलगामी चिंताओं
का जायजा
लेते हैं.बीसवीं सदी
और अब
इक्कीसवीं सदी में सता , राजनीति,
समाज, संस्कृति
और शक्ति
की संरचनाओं
के सम्मुख
मनुष्य की
नियति ओर
उसके फलितार्थों
को व्यक्त
करने वाले
जो कठिन
प्रश्न उठे
है
उनकी
सबसे अच्छी
बानगी विश्व
भर में
इस आधुनिक
समय में
लिखी गयी
कविताओं में
मिलती है.
. इन निबन्धों
में अन्ना
आख्मातोवा , ओसिप मंदेलस्ताम ,जिब्ग्न्यू हरबर्ट
, यानिस रित्सोस
, यहूदा अमीखाई
,महमूद दरवेश
, विस्लावा शिम्बोर्स्का , डेरेक वाल्कोट, अदम
जिग्जेवस्की, कार्लोस अन्द्रादे, केर्लिन फोर्से
आदि के
बहाने विश्व
कविता का
एक ऐसा
व्यापक और
बहुरंगी फलक
उभरता है
, विजय कुमार
का गद्य
अनूठा है.
विश्व- कविता
पर ऐसे
निबंध कोई
ठेठ आलोचक
नहीं , एक
सृजनशील कवि
ही लिख
सकता था.
अपने गहन
अध्ययन ,निर्मम
जीवन विवेक,
अचूक अन्तर्दृष्टि,
पारदर्शिता और गहरे राग से
भरी इस
भाषा ने
हिन्दी में
काव्य के
संस्कार और
समझ को
संवारने में
महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है और
कहना होगा
कि एक
बड़े अंतराल
को भी
भरा है
. कई अर्थों
में यह
एक अनिवार्य
पुस्तक है
. हिन्दी जगत
इस पुस्तक
का स्वागत
करेगा.
देश निर्मोही
देश निर्मोही
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